एक तो परिवार बड़ा
उस पर बेरोजगारी की
मार
श्वास लेना भी है
दूभर
आज के माहोल में
जीवन कटुता से भरा
कहीं प्रेम न ममता
हर समय किसी न किसी की बात
पर असंतोष ही उभरता मस्तिष्क में
यूं ही छत पर
धीरे धीरे समय बीत जाता
पञ्च तत्व में विलीन हो जाता
वह यादों में सिमिट कर रह जाता |
आशा