25 दिसंबर, 2017

असंतोष





एक तो परिवार बड़ा
उस पर बेरोजगारी की मार
श्वास लेना भी है दूभर
आज के माहोल में
जीवन कटुता से भरा
कहीं प्रेम न ममता 
हर समय किसी न किसी की बात 
पर असंतोष ही उभरता मस्तिष्क  में
यूं ही छत पर
धीरे धीरे समय बीत जाता
 पञ्च तत्व में विलीन हो  जाता 
वह यादों में सिमिट कर रह जाता |
आशा