10 दिसंबर, 2011

है नाम जिंदगी इसका


बोझ क्यूँ समझा है इसे
है नाम जिंदगी इसका
सोचो समझो विचार करो
फिर जीने की कोशिश करो |
यत्न व्यर्थ नहीं जाएगा
जिंदगी फूल सी होगी
जब समय साथ देगा
जीना कठिन नहीं होगा |
माना कांटे भी होंगे
साथ कई पुष्पों के
दे जाएगे कभी चुभन भी
इस कठिन डगर पर |
फिर भी ताजगी पुष्पों की
सुगंध उनके मकरंद की
साथ तुम्हारा ही देगी
तन मन भिगो देगी |
होगा हर पल यादगार
कम से कमतर होगा
कष्टों का वह अहसास
जो काँटों से मिला होगा |
सारा बोझ उतर जाएगा
छलनी नहीं होगा तन मन
कठिन नहीं होगा तब उठाना
इस फूलों भरी टोकरी को |
आशा




09 दिसंबर, 2011

छंद लेखन

छंद लेखन होगा कठिन यह ,आज तक सोचा न था |
होगी कठिन इतनी परिक्षा ,यही तो जाना न था ||

फिर भी प्रयत्न नहीं छोड़ा ,बार बार नया लिखा |
ना पा सकी सफलता तब भी ,ध्यान मात्रा का रखा ||

यह नहीं सोचा हो गेय भी ,भावना में खो गयी |
गणना में मात्रा की उलझी ,सोचती ही रह गयी ||

सफलता से है दूरी अभी ,आज तक समझा यही |
मन मेरा यह नहीं मानता ,चाहता जाना वहीँ ||
आशा



06 दिसंबर, 2011

मन भ्रमित मेरा

चंचल चितवन के सैनों से ,क्यूं वार किया तुमने |
तुम हो ही इतनी प्यारी सी ,मन मोह लिया तुमने ||

मृदु मुस्कान लिए अधरों पर ,यूँ समक्ष आ गईं |
सावन की घनघोर घटा सी ,अर्श में छाती गयी ||

नहीं सोच पाया मैं अभी तक ,है ऐसा क्या तुम में |
रहता हूँ खोया खोया सा ,स्वप्नों में भी तुम में ||

क्या तुम भी वही सोचती हो ,करती हो प्यार मुझे |
या है मन भ्रमित मेरा ही ,तुम छलती रहीं मुझे ||
आशा

04 दिसंबर, 2011

नया अंदाज

हुए बेजार जिंदगी से इतने
हर शै पर पशेमा हुए
था न कोइ कंधा सर टिकाने को
जी भर के आंसू बहाने को |
हर बार ही धोखा खाया
बगावत ने सर उठाया
हमने भी सभी को बिसराया
हार कर भी जीना आया |
है दूरी अब बेजारी से
नफ़रत है बीते कल से
अब कोइ नहीं चाहिए
अपना हमराज बनाने को |
सूखा दरिया आंसुओं का
भय भी दुबक कर रह गया
है बिंदास जीवन अब
और नया अंदाज जीने का |
आशा