१-मनमोहन के संग किये दो दो हाथ 
हाथों में टिपरी का जोड़ा लिए साथ 
डांडिया  खेलने का आनंद ही है कुछ और 
रंग आ गया पांडाल में जोश छा रहा चहु ओर |
२-डांडिया खेलने का जोश
   उसे कर देता मदहोश 
कई दिन से सोच रही 
क्या ड्रेस पहनेगी उस दिन |
३-श्वेत धवल गोल गोल ओलों ने 
बरफ के टुकड़ों ने ढाया कहर 
किसान बेबस हुए दुआ मांगी प्रभू से 
देख कर आसमान स्याह |
     
आशा 
४-बीती  यादों के साए में जिए जा रहे हैं 
उन स्वर्णिम पलों की चाह  में 
खुद को भुला रहे हैं 
जहां ठहराव सा लगा था कांटो भरे जीवन में |
५- वह जीवन क्या जो  किसी चाह से न उपजा हो  
वह गीत क्या जो स्वरों में न बंधा हो
वे सब तो रह जाते हैं केवल शोर हो कर  
दूरियां हो जाती है वास्तविकजिन्दगी से |


