छल कपट में लिप्त
है यह दिखावे की दुनिया
चमक दमक की दुनिया
छद्म प्रदर्शन की दुनिया
मेरी क्या विसात कि उसे
बेपरदा कर पाऊँ
है अच्छा भी यही
कि हूँ दूर बहुत उससे
तभी तो जी पाती हूँ
खुल कर सांस ले पाती हूँ
हर बनावट से दूर
शान्ति से रह पाती हूँ
जब भी जिसने
वहां कदम रखे
एहसासों का खजाना दिखा
चमक दमक से जिसकी
खुले प्रलोभनों के द्वार दिखे
लालच उन्हें पाने का
दीवानगी की हद तक बढ़ा
वर्त्तमान मेराथन में
वह भी शामिल हो गया
पर जब पीछे मुड़ कर देखा
बहुत देर हो चुकी थी
हाथों में कुछ भी न था
चंद कण भर थे शेष
सब कुछ फिसल गया था
मुट्ठी में भरी रेत की तरह
बस रह गया था
थके हुए तन मन का भार
जिसे वह ढोए जा रहा था
दुनिया की रीत निभा रहा था
यथार्थ समक्ष आते ही
वह टूटने लगा बिखरने लगा
असहनीय पीड़ा से भरा
असहज सा होने लगा
रही सम्हलने की कोशिश बेकार
क्यूं कि बहुत देर हो चुकी थी
किसी में इतनी शक्ति न थी
जो सहारा उसे दे पाता
चमक दमक की दुनिया से
उसे बाहर ला पाता
मैंने देखा है उसे बहुत नजदीक से
उसी से यह नसीहत ले पाई
बाह्य आडम्बरों युक्त दुनिया से
एक दूरी बना पाई
वही मेरे काम आई
अब वहां की चमक दमक
मुझे त्रस्त नहीं करती
बहुत दूर हूँ दिखावे से
हर बनावट से दूरी रख
शान्ति से रह पाती हूँ
आशा