25 नवंबर, 2011

छलावा


है जिंदगी एक छलावा
पल पल रंग बदलती है
है जटिल स्वप्न सी
कभी स्थिर नहीं रहती |
जीवन से सीख बहुत पाई
कई बार मात भी खाई
यहाँ अग्नि परीक्षा भी
कोई यश न दे पाई |
अस्थिरता के इस जालक में
फँसता गया ,धँसता गया
असफलता ही हाथ लगी
कभी उबर नहीं पाया |
रंग बदलती यह जिंदगी
मुझे रास नहीं आती
जो सोचा कभी न हुआ
स्वप्न बन कर रह गया |
छलावा ही छलावा
सभी ओर नज़र आया
इससे कैसे बच पाऊँ
विकल्प नज़र नहीं आया |

आशा

23 नवंबर, 2011

कैसा जीवन पथ




हम दौनों के बीच
यह कैसी दरार पड़ गयी
प्यार नाम की चिड़िया
कहीं कूच कर गयी |
पत्ता डाल से टूटा
सभी कुछ बेगाना लगा
जाने कब सांझ उतर आई
गुत्थी और उलझ गयी |
जितना भी सुलझाना चाहा
ऊन सी उलझती गयी
कंगन की गांठों की तरह
और अधिक कसती गयी |
एक हाथ से न खुल पाई
झटका दिया तोड़ डाला
है तेरी यह रुसवाई कैसी
सारी खुशियाँ ले गयी |
ना गिला ना कोइ शिकवा
फिर भी दूरी बढ़ गयी
जीवन की मधुरता को
जाने किसकी नज़र लगी |
आशा

20 नवंबर, 2011

कहीं संकेत तो नहीं


मन में दबी आग
जब भी धधकती है
बाहर निकलती है
थर्रा देती सारी कायनात |
मन ही मन जलता आया
सारा अवसाद छिपाया
सारी सीमा पार हों गयी
सहनशक्ति जबाब दे गयी |
विस्फोट हुआ ज्वाला निकली
धुंआ उठा चिंगारी उड़ीं
हाथ किसी ने नहीं बढाया
साथ भी नहीं निभाया |
समझा गया हूँ क्रोधित
इसी से आग उगल रहा
पर कारण कोइ न जान पाया
मन मेरा शांत न कर पाया |
बढ़ने लगी आक्रामकता
तब भयभीत हो राह बदली
बरबादी के कहर से
स्वयम् भी न बच पाया |
बढ़ी विकलता ,आह निकली
बहने लगी अश्रु धारा
पर शांत भाव आते ही
ज़मने लगी , बहना तक भूली |
फिर जीवन सामान्य हो गया
कुछ भी विघटित नहीं हुआ
है यह कैसी विडंबना
सवाल सहनशीलता पर उठा |
बार बार आग उगलना
फिर खुद ही शांत होना
कहीं यह संकेत तो नहीं
सब कुछ समाप्त होने का |
आशा