रात कितनी भी स्याह क्यूँ न हो
चाँद की उजास कम नहीं होती
प्यार कितना भी कम से कमतर हो
उसकी मिठास कम नहीं होती
कितना प्यार किया तुझको
यह तक नहीं जता पाया
तेरे वादों पर ऐतवार किया
जब भी चाह ने करवट ली
चाँद बहुत दूर नजर आया
यही बात मुझे सालती है
आखिर मैंने क्यूँ प्यार किया
वादों पर क्यूँ ऐतवार किया
कहीं कमीं प्यार में तो नहीं
जो तू इतना बदल गयी
तनिक भी होती ऊष्मा
यदि हमारे प्यार में
तू भी उसे महसूस करती
यह दिन नहीं देखना पड़ता
प्यार से भरोसा न उठता |
आशा