07 अप्रैल, 2011

है व्यक्ति परक


है व्यक्ति परक बहुत चंचल
बहता निरंतर
पहाड़ों से निकलती
श्वेत धवल जल की धारा सा
ले लेता रूप जल प्रपात का
फिर कल कल करता झरने सा
कभी शांत , कभी आकुल ,
तो उत्श्रृखल कभी
हो जाता वेग वती सा |
जल की गति
बाधित की जा सकती है
पर मन पर नियंत्रण कहाँ |
बंधन स्वीकार नहीं उसको
निर्वाध गति चाहता है
होता है व्यक्ति परक
जो दिशा दश मिलती है
उस पर ही चलता जाता है |
बुद्धि का अंकुश नहीं चाहता
भावनाओं से दूर बहुत
अपनी स्वतंत्रता चाहता है |
आशा




06 अप्रैल, 2011

तस्वीर उजड़े घर की



बहारों ने दी थी दस्तक
इस घर के दरवाजे पर
पैर पसारे थे खुशियों ने
छोटी सी कुटिया के अंदर |

लाल जोड़े मैं सजधज कर
जब रखा पहला कदम ,
अनेक स्वप्न सजाए थे
आने वाले जीवन के |
था मेंहदी का रंग लाल
प्यार का उड़ता गुलाल ,
सारे सुख सारे सपने
सिमट गए थे बाहों में |
वह मंजर ही बदल गया
जब झूमता झामता वह आया ,
गहरी चोट लगी मन को
जब यथार्थ सामने आया |
कारण जब जानना चाहा
उत्तर था बड़ा सटीक ,
रोज नहीं पीता हूँ
खुश था इसी लिए थोड़ी ली है |
पीने का क्रम ,
गम गलत करने का क्रम
अनवरत बढ़ता गया
सामान तक बिकने लगा |
हाला का रंग ऐसा चढ़ा
पीना छूट नहीं पाया ,
रोज रोज कलह होती थी
रात भर ना वह सोती थी |
बिखर गए सारे सपने
अरमानों की चिता ज़ली
कल्पनाएँ झूठी निकलीं
बस रह गयी यह
तस्वीर उजड़े घर की |

आशा