24 अक्टूबर, 2013
21 अक्टूबर, 2013
वह और गुलाब
आज पुनः आई बहार
चटकी कलियाँ
चटकी कलियाँ
खिले फूल महके गुलाब 
बागवान के आँगन में|
मन पर काबू  नहीं रहा 
हाथ बढा कर  लेना चाहा 
एक फूल उस क्यारी से|
वह तो हाथ नहीं आया 
शूल ने ही स्वागत किया 
नयनों से अश्रु छलके 
उस शूल की चुभन से 
फिर भी मोह नहीं छूटा 
उस पर अधिकार जमाने का | 
बड़ी जुगत से बहुत जतन से 
 केशों में जिसको सजाया 
दर्पण में देखा 
पूंछ ही लिया
पूंछ ही लिया
सच कहना  दौनों में से 
है कौन अधिक सुन्दर ?
वह पहले तो रहा मौन 
फिर  बोल उठा
 हैं
दौनों ही 
 एक से बढ़ कर एक|
फूल तो फूल ही है 
 सुरक्षित कंटक से 
 वह है  उससे भी कोमल
सुन्दर सूरत सीरत वाली
सुन्दर सूरत सीरत वाली
कोई नहीं जिसका  रक्षक |
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