है एक दिन की बात है
मैदान पर खेलने गए थे
समय का ध्यान ही नहीं रहा
शाम गहराई ,होने लगी रात |
हम छोटे थे रुआसे हुए
अब घर कैसे जाएंगे
एक राहगीर उधर से जा रहा
रोने का करण जान कर
हाथ थामें उसने छोड़ा घर पर
अब समय का ध्यान रखने
की कसम खाई
अपने को बहुत समझदार समझा
एक शिक्षा ली
समय का ध्यान रखने की
आशा सक्सेना