26 जून, 2021

मैं हारी तुम संग नेह लगा ?


                                                                   दिन रात तुम्हारा

  गुणगान किया 

सिर्फ तुम्हारा ही 

एकाग्र चित्त  हो 

ध्यान किया है  |

फिर भी न आए 

 क्या कमीं रहा गई 

तुम्हें मनाने में 

 बिगड़ी बनाने में |

गरमी बीत गई 

सावन आया 

तुम भूले मुझे 

मैं  न बिसरा पाई |

|तुम्हारी यह बेरुखी 

मुझे रास न आई

इतना तो इंगित करते 

कमीं कहाँ रही मेरी अरदास में |

दिन रात की   भक्ति 

अपना सारा बैभव  छोड़ा 

अब तो हार गई हूँ 

क्या कमी रही है 

मुझसे तुम्हारे  नेह में |

किस लिए ठानी है 

रार तुमने मुझसे 

मैं तो हारी

 मनुहार तुम्हारी करके |

अब तक जान न पाई 

क्या गुनाह किया मैंने 

तुम संग नेह लगा 

हूँ तुम्हारी अनुरागी |

आशा 




25 जून, 2021

हुआ प्यार में दीवाना

 

                                       


दिल खोल कर गाना

 मन को बहलाना

रूठना मनाना

कुछ नया नहीं है |

हुआ प्यार में दीवाना

 उसमें ही खोए रहना

बहकना बहकाना

क्या गलत नहीं है ?

क्या है गलत और क्या है सही

जानने  को अति उत्सुक होना

कहाँ हुई चूक मुझे समझाना

कहीं बाधा तो न आएगी कार्य सिद्धि में |

मुझे यह भी समझाना

  जल्दबाजी की है मैंने हद से गुजर जाने में

या मेरी खोज सही मार्ग  पर चल रही है

कुछ गलत नहीं चुना है मैंने |

आशा 


कुछ तुमने कहा


 

कुछ तुमने कहा है 

क्या मैंने सून लिया 

कहीं कोई चूक

 हो गई है |

कोई अर्थ न निकला

इस वार्ता का

 अर्थ का अनर्थ हुआ   

देख कर हँसी थम न सकी |

इस तरह की बातें

 तुम्हें शोभा नहीं देतीं

मुझ में भी समझ न थी

अब हूँ दुखी हँसी पर 

सोच समझ कर 

जब बोलो शब्दों को तोल कर बोलो  

मन को सदमा न पहुंचेगा  |

मेरा मन  मुझसे 

न सम्हल पाया  

पर फिर भी  सोचा तुम्हें

 करदूं सतर्क शायद कुछ लाभ हो |

कटु भाषण कर्णकटु हो कर  

मन को दुःख पहुंचाता है

भलाई इसी में है दौनों की

तटस्थ  भाव से सोचे समझें |  

आशा 


आशा 

24 जून, 2021

मेरे मन की (निहारिका में )

 


 मेरे मन की -(निहारिका काव्य संग्रह -१३ )

बचपन से ही मुझे लिखने शौक था| पर जैसे जैसे उम्र बढ़ी  व्यस्तता बढ़ती गई| लिखने के लिए समय का अभाव होने लगा| पर रिटायर होने के बाद लगा कि कुछ करना चाहिए जिससे समय का सदुपयोग हो सके| धीरे धीरे शौक आदत में बदला और अंतरमन में स्वतः  भाव आने लगे| 

       कंप्यूटर चलाने में आनंद आने लगा |घर से  भी बहुत प्रोत्साहन मिला| इस कार्य के लिए मेरी छोटी बहन साधना वैद और मेरे हमसफर  श्री हरेशजी का भी भरपूर सहयोग रहा| अभी तक मेरी बारह कविता संग्रह प्रकाशित हो चुकी हैं| यह तेरहवा कविता संग्रह “निहारिका” आपके सन्मुख है| मैंने अधिकाँश विषयों पर कविता के माध्यम से अपने भावों को अभिव्यक्त करने  की कोशिश की है| 

  मुझे आसपास की प्रकृति में विद्यमान घटनाओं पर लेखन  बहुत अच्छा लगता है |  

शाम ढलने लगी है 

सूर्य चला अस्ताचल को 

व्योम में धुधलका हुआ है 

रात्रि का इन्तजार है (श्याम ढलने लगी है )

     मेरी कुछ रचनाएं जो मुझे बहुत पसंद हैं बानगी देखिये –भरमाया हुआ ,मन अशांत ,अधिकार कर्तव्य ,जन्मदिन मेरा ,जीवन की डगर ,काश कुछ ऐसा हो जाए, निहारिका , एक छत के नीचे, मन में संग्राम छिड़ा है, आराधना हैं| हाइकु लेखन में अनोखा आनंद आता है| 

कुछ हाइकु की बानगी -

१) है अभिलाषा 

किसी के काम आऊँ

 रहूँ सफल 

२) अंधेरी रात 

हलकी बरसात 

दिल खुश है 

३) मोर नाचता 

छम छम करता 

पंख फैलाए 

४) नटनागर 

बंसी का है बजैया

मन हरता  


कविताओं की कुछ मन को छूती पंक्तियाँ देखिये - 

है जब तक 

प्राणों का आकर्षण 

भरमाया सा 

मद मोह माया में| (भरमाया हुआ)

शारीरिक चोट तो सही जा सकती है 

मन को लगी चोट सहन नहीं होती| (वेदना और विरह)

पैरों में बंधन क्यों 

 बेड़ियां लगी है 

हाथ भी बंधे हैं खुलते नहीं हैं| (मन चंचल)

   सही मूल्यांकन मेरी रचनाओं का पाठक गण ही कर पाएंगे| इसलिए आपके समक्ष प्रस्तुत है मेरा नया कविता संग्रह “निहारिका” है|

(आशा लता सक्सेना )

 




काव्य संग्रह १३-निहारिका का कवर पेज

 


हाइकु (राम)

 


१-राम का  नाम

                         दे मन को विश्राम

                           भजन करो 

२-आदी हुई हूँ

बिना राम नाम के

चैन न आए 

३-अखंड पाठ

रामायण का करूं

सुकून आए

४-राम का नाम

 जपने से इसके 

हो मन शांत  

५-जय बोलते  

सीता राम लखन  

हनुमान की   

आशा 












  

22 जून, 2021

हाइकु (पर्यावरण )

१-पर्यावरण

हमारे आस पास

हुआ सुखद

२-है बदलाव

 हमारी  सुरक्षा से

परिवर्तित 

३-स्वच्छ वायु है

निर्मल जल हुआ

हरियाली है

४-संरक्षण से

पर्यावरण स्वच्छ है

आसपास का

५-कैसे  हुआ है

जाग्रत आरक्षण

सोच गहरा

आशा

 



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21 जून, 2021

वह जान जाती है



 जब आती है

वह जान जाती है

कैसे स्वप्न  साकार

करने होंगे

किताबी ज्ञान नहीं

स्वीकार उसे

 चाहती  यथार्थ में

जीने की राह

कितने शूल चुभे

उस मार्ग में

घायल पैर दुखे  

सहम जाती

नयन भरे भरे 

 हैं पहचान

उसके अंतस की  

सांत्वना दी है

 धीरज  दिलाने को

कोई नहीं है

है बहुत लगाव 

मुझे उससे

कोई दिखावा नहीं

आशा