10 अप्रैल, 2014

एक मतदाता

यह रचना एक सच्चे किस्से पर आधारित है |जब लोग अपना वोट मतदान पेटी में डाला करते थे |

एक प्रत्याशी आया
बड़े प्रलोभन लाया
टेम्पो में सब को लिया
बूथ तक ले आया |
तुमने वोट दिया
 मैंने भी वोट दिया
एक महान कार्य
 सम्पन्न किया |
एक सीधा साधा प्राणी
बड़े उत्साह से आया
लिस्ट में नाम खोज
बूथ में प्रवेश पाया |
स्याही लगवाई
जोर से गुहार लगाई
वोटिग मशीन
कहाँ है भाई |
चेहरा खुशी से
 दमकता था
जब एक साथ
 कई बटन दबाए |
उत्सुक  प्रत्याशी
पूछ बैठा
किसको वोट दिया
जवाब  मिला
सब को खुश किया |
आग बबूला प्रत्याशी
अपना आपा खो बैठा
घूंसे लात जमाए
वहीं छोड़ कर चल दिया |
चोट खाया वोटर
 सोच में डूबा
सब को खुश किया उसने
क्या गलत किया |
आशा

07 अप्रैल, 2014

वह क्या जाने पीर





वह क्या जाने पीर हार की
जो कभी हारा ही नहीं
आहत मन ही जानता है
महत्व चोट के अहसास की
सड़क से पत्थर
तभी हटाया जाता है
जब कोइ ठोकर खाता है
स्वस्थ शरीर उत्फुल्ल मन
तभी होता है जब कभी
अस्वस्थता का फैलता जहर
महसूस किया हो
बचने के लिए उससे
कई प्रयत्न किये हों |
आशा