जब याद आई तुम्हारी
जी भर कर रोई
तब भी मन न भरा
फिर क्या करती |
कोई नहीं था
दो बोल मीठे बोलने को
थी असहाय अकेली
खोजती राह भी कैसे |
सोचा जब अकेले ही जाना है
फिर आशा किसी से क्यों ?
अपने को बदल न पाई
आज तक फिर खुद में
परिवर्तन की आशा क्यों ?
यही हाल रहा यदि
कुछ न कर पाऊँगी
सफलता की देहरी
तक न छू पाऊंगी |
हूँ अकेली उदास
किसी का साथ नहीं है
कोई हमसफर नहीं है
जिसका हाथ हो सर पर |
आशा सक्सेना