![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiYqj_L73p4dRB2KxH6zTm5SJ_eZAs19iuSZR9S-TMFbgP2R6LuVoi6PEPzYJJSQNJBj11Cb0uHW48S4h2Bjo4JCboBPXecpTEXHYZt9l2XTTGQJAoj6VF_GlZcK6gLV2Djw7iiFNPr9M8/s320/index.jpg)
है ऐसा आखिर क्या |
जो कोइ नहीं देखता
तुझे नहीं जानता |
हल्की सी छाया दिखती
तेरा वजूद जताती |
तूने भी न पहचाना
पर मैं उसे देख पाया |
देखा तो तूने भी उसे
पर अनदेखा किया |
मुँह और फेर लिया
यह क्या उचित था |
यदि उलझन नहीं
है क्या यह बेचारगी |
तू कितना सोचती है
अंतस में खोजना |
तभी तो जान पाएगी
कुछ कहना सुनाना |
फिर सोचना गुनना
सक्षम तभी होगी |
अपने को समझेगी
ख़ुद को पा जाएगी |
चमकेगी चहकेगी
रूठी ना रहेगी |
आशा