07 अगस्त, 2020

आत्मबल में सराबोर


ना पीछे हटी ना ही  मानी हार
रही सदा बिंदास सब के साथ
 खुद को अक्षम नहीं पाया
आत्म बल से  रही सराबोर  सदा |
कभी स्वप्न सजोए थे
 पंख फैला कर उड़ने के
 अम्बर में ऊंचाई  छूने के
वह भी पूरे न हो पाए |
पर  मोर्चा अभी तक छोड़ा नहीं है
हार का कोई कारण नहीं है  
हर बार नए जोश से उठी
पुराने स्वप्न साकार करने हैं  |
भरी हुंकार नए स्वप्न सजोने को
कभी गलतफहमी नहीं पाली
खुद की कार्य क्षमता पर
 मनोबल को बढाया ही है |
हूँ जीत के करीब  इतनी
कभी हार स्वीकारी नहीं है
हूँ खुद के भरोसे पर जीवित  
 इस छोटी सी जिन्दगी में |
आशा

06 अगस्त, 2020

खोखला मन







मन क्या चाहता था कभी सोचा नहीं था
जब विपरीत परिस्थिति सामने  आई
मन ने की बगावत  हुई बौखलाहट
 झुझलाहट में  गलत राह पकड़ी
 कब  बाजी हाथ से निकली ?
किसकी गलती हुई ?पहचान नहीं पाया   
अब क्या करे  ?किससे  मदद  मांगे   ?
पहले कभी सोचा नहीं अंजाम क्या होगा ?
 जब तीर कमान से निकल गया
 खाली हाथ  मलता रह गया 
उसका  दिल हुआ  बेचैन फिर भी  
कोई  निदान  इस समस्या का हाथ नहीं आया
सारे ख्याल किताबों में छप कर  रह गए
क्यूं कि पुस्तक भी  सतही ढंग से  पढ़ी थीं
  गूढ़ अर्थों का मनन  किया नहीं  था
 सही गलत की पहचान नहीं थी
तभी जान नहीं पाया  मन की चाहत को
पहचान नहीं पाया  वह  खुद को
सब आधुनिकता की भेट चढ़ गया  |
आशा 

05 अगस्त, 2020

राम जन्म भूमि का शिलान्यास आज

आज है   बड़ा  शुभ दिन

सरयू नदी के तट पर    

शिलान्यास श्री राम जी की

 जन्म भूमि का होना है|

आज होगा बहुप्रतीक्षित  

भूमी पूजन मंदिर स्थल का    

बरसों बरस से था इंतज़ार

 आज के इस सुअवसर  का |

बहुत प्रयास किये गए थे

 प्राणों  की आहुती भी दी थी कितनों ने

जो अब फलीभूत हुई  है

अब प्रतिफल मिला है इस रूप में  |

राम भक्तों की मनोंकामना

पूरी हो रही है  सत्य में

देश को  तोहफा मिला अनमोल

अयोद्ध्या में भव्य  राम मंदिर के रूप में |

आशा

 


04 अगस्त, 2020

व्यथा मन की



जब विष बुझे  शब्दों के बाण
 मुहँ के  तरकश से निकलते
क्षत विक्षत मन करते
 उसे  विगलित करते | 
दिल का सारा चैन हर लेते
व्यथा मन की जानने की
किसी को यूं तो जिज्ञासा न होती
जो भी जानना चाहते ठहरते |
परनिंदा का आनंद उठाते   
 अपनी उत्सुकता को
 और भी हवा देते |
 मन की व्यथा बढ़ती जाती
खुद मुखर होने को 
 बेचैन हो  जाती |
जब तक  मन का हाल
 बयान नहीं करती
अंतस में करवटें
 बदलने लगती  |
व्यथा मन की
 इतनी बढ़ जाती
 चहरे के  भावों पर
 स्पष्ट दिखाई देती|
 सोचना पड़ता
 कोई तो निदान होगा
 जग से इसे छिपाने का
कोई हल नजर नहीं आता  
इससे निजात पाने का |
जब व्यथा विकराल रूप लेती
 हद से गुजर जाती  
बहुत समय लगता 
मन को सामान्य होने में  |
हर  शब्द तीर सा  चुभता 
अंतस  में बहुत कष्ट होता  
 दिल के टुकड़े हजार करता
जाने अनजाने में |
आशा