ना पीछे हटी ना ही मानी हार
रही सदा बिंदास सब के साथ
खुद को अक्षम नहीं पाया
आत्म बल से रही सराबोर सदा |
कभी स्वप्न सजोए थे
पंख फैला कर उड़ने के
अम्बर में ऊंचाई छूने के
वह भी पूरे न हो पाए |
पर मोर्चा अभी तक छोड़ा नहीं है
हार का कोई कारण नहीं है
हर बार नए जोश से उठी
पुराने स्वप्न साकार करने हैं |
भरी हुंकार नए स्वप्न सजोने को
कभी गलतफहमी नहीं पाली
खुद की कार्य क्षमता पर
मनोबल को बढाया ही है |
हूँ जीत के करीब इतनी
कभी हार स्वीकारी नहीं है
हूँ खुद के भरोसे पर जीवित
इस छोटी सी जिन्दगी में |
आशा