मुझे विश्वास हैअपने पर
और किसी पर हो या नहीं तुम पर तो है , किसी के प्यार पर हो ना हो
तुम्हारे प्यार की बौछार पर बहुत कुछ बन
पाऊंगी किसी उच्च पद पर आसीन हो
कभी यदि विश्वास डगमगाया मन को आघात हुआ
सोचूंगी किसे अपना कहूं|
एक यही बात कौन अपना कौन पराया
मुझे मालूम है बुरे समय में कोई साथ नहीं देता
गैर तो गैर होते अपने भी पल्ला
झाड़ लेते
मन को चोटिल कर जाते |
समय बदलते ही फिर से अपने रिश्तों की याद दिला
मन को गुमराह करने की फिराक में रहते
पर जब सफल नहीं हो पाते पीछे से बुराई करते
इन सब बातों का मुझ पर असर नहीं होता
मेरा आत्मबल बना रहता |
पर खाली समय में बीती बातें मुझे सालतीं
मुझे अपनी गलतियों का एहसास करातीं
हर बार मन कहता कुछ सीखों
व्यवहार में सुधार करो,
मन भी यही सुझाव बारंबार देता
फिर भी मुझे किसी और पर विश्वास नहीं होता
कभी मुझमें सुधार होगा या नहीं
बस एक ही बार मन में रहती
कभी सुधार आएगा नहीं
सामाजिक मुझे कभी होने नहीं देगा