01 सितंबर, 2018
31 अगस्त, 2018
29 अगस्त, 2018
बैर
सम्भाव सदा रखते
ना की किसी से दोस्ती
नहीं किसी से बैर
अति है सब की बुरी
बहुत मिठास लाती कड़वाहट
आपसी संबंधों में
पड़ जाती दरार दिलों में
जो घटती नहीं
बढ़ती जाती है
बढ़ती जाती है
बट जाती है टुकड़ों में
जिसने की सीमा पार
उसी का टूटा विश्वास
है जरूरी स्वनियंत्रण
समभाव रखने के लिए
सच्ची मित्रता के लिए
मन मारना पड़ता है
उसे बरकरार रखने के लिए
बैर भाव पनपने में तो देर नहीं होती
पर बैर मिटाने में वर्षों लग जाते हैं
तब भी दरार कहीं रह जाती है
मन का दर्पण दरक जाता है
फिर जुड़ नहीं पाता
जीवन में सदा
असंतोष बना रहता है
पर बैर नहीं मिट पाता है
इससे बचने वाले
जीते हैं खुशहाली में |
आशा
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