न जाने कैसे
 नियम
बनाए गये   
है कैसी विदेश नीति 
आए दिन पीछे से छुरा चलाते है 
वार अचूक करते है 
जरा भी नहीं सोच जाग्रत होता 
जाने कितनी गोद 
 सूनी
होंगी माताओं की
जाने कितनी महिलाओं को
 दर्द सहना होगा बिछोह का 
सूनी उजड़ी मांगों का 
 मुल्क कब तक सहेगा 
पीठ पीछे वार को 
क्या कोई कठिन कदम
 कभी
न उठेगा 
ऐसा कब तक चलेगा
 रोजाना वीर शहीदों की शहादत
सीमा पर डर का आलम 
मुल्क कबतक सहेगा 
आशा 

