कहने को अब रहा क्या है 
किसे है फुरसत मेरे पास बैठने की 
 इस कठिन दौर से गुजरने में 
मुझ पर क्या बीत रही है 
किसी ने कोशिश ही नहीं की है जानने की 
मुझे अकेलापन क्यूँ खलता है 
कभी सोचना गहराई से 
 तभी
जान सकोगे मुझे पहचान सकोगे
मैं क्या से क्या हो गई हूँ  
मैंने किसी को कष्ट न  दिया 
पर हुई अब  पराधीन इतनी कि
 अब
बैसाखी भी साथ नहीं देती 
जीवन से मोह अब टूट चला है
जीवन से मोह अब टूट चला है
अब चलाचली का डेरा है 
खाट से  बड़ा ही  लगाव हुआ  है 
बिस्तर ने मुझे अपनाया है 
मैं स्वतंत्र प्राणी थी  
अब उधार के पल जी रही हूँ 
ठहरे हुए जल की तरह
ठहरे हुए जल की तरह
 एक
ही स्थान पर  ठहर कर रह  गई हूँ 
 यह
सजा नहीं तो और  क्या है ? 
आशा 



