लगती बड़ी सुहानी विभावरी
चमकते दमकते छोटे बड़े
तारों के संग व्योम में
धवल चन्द्र की रौशनी भी संग होती |
जब नीला आसमान होता
संध्या होती अंधियारा बढ़ने लगता
तारे पूरे जोश से आते
लेकर सब छोटे बड़ों को संग |
कभी जब काले भूरे बादल आते
लुका छिपी का खेल होता
पर अधिक समय नहीं
जल्दी से बदरा आगे बढ़ जाते |
फिर आसमा में एकाधिकार होता
चमकते दमकते तारों का |
उनकी रौशनी इतनी होती
स्पष्ट मार्ग दिखाई देता पथिकों को
खाली सड़क पर विचरण का
अनूठा ही आनंद होता |
आधी रात गुजरते ही
खिलने लगते पुष्प पारिजात के
भोर की बेला में झरने लगते
श्वेत चादर बिछ जाती वृक्ष तले |
दृश्य बड़ा मनोरम होता
मन को सुकून से भर देता
महक भीनी भीनी सी
दूना कर देती विभावरी में |
आशा