चाँद ने चांदनी लुटाई
शरद पूनम की रात में
सुहावनी मनभावनी
फैली शीतलता धरनी पर
कवि हृदय विछोह उसका
सह नहीं पाते
दूर उससे रह नहीं
पाते
हैं वे हृदयहीन
जो इसे अनुभव नहीं
करते
इसमें उठते ज्वार को
महसूस नहीं करते
कई बार इसकी छुअन
इसका आकर्षण
ले जाती बीते दिनों में
वे पल जीवंत हो
उठते
आज भी यादों में
है याद मुझे वह रात
एक बार गुजारी थी
शरद पूर्णिमा पर ताज में
अनोखा सौंदर्य लिए वह
जगमगा रहा था रात्रि में
आयतें जो उकेरी गईं
आयतें जो उकेरी गईं
चमक उनकी हुई दुगनी
उस हसीन चांदनी में
आज भी वह दृश्य
नजर आता है
बंद पलकों के होते ही
बीते पल में ले जाता
है
उस शरद पूर्णिमा की
याद दिलाता है |
आशा