20 जुलाई, 2012

ध्येय मेरा

नहीं आसान इस लोक में 
दुर्गम मार्ग से जाना 
सकरी बीथिका में 
कंटकों से बच पाना 
पर  एक लक्ष्य एक ध्येय 
देता संबल मुझे 
तुझ तक पहुँचने का 
तुझ में रमें रहने का 
मन में व्याप्त आतुरता 
खोजती तुझे 
दीखता जब पहुँच मार्ग 
कोई बंधन, कोई आकर्षण 
या  हो मोह ममता
सब बोझ से लगते
 उन् सब से तोड़ा नाता 
श्याम सलौने तुझसे 
जब से जोड़ लिया नाता 
खुद  को भी भूल गया
तुझ  में मन खोया ऐसा 
तेरी  मूरत में डूबा 
साक्षात्कार हो तुझसे 
है बस यही ध्येय मेरा |
आशा




18 जुलाई, 2012

मैं मनमौजी


मैं मनमौजी रहता मगन
अपनी ही दुनिया में 
भावनाओं में बहता 
कल्पना की उड़ान भरता 
उड़ान जितनी ऊंची होती 
कुछ नई  अनुभूति होती 
वन उपवन में जब घूमता 
वृक्षों  का हमजोली होता 
पशु पक्षियों को दुलराता 
कहीं  साम्य उनमें पाता 
जब  बयार पुरवाई बहती 
जीवन में रंग भर देती 
बैठ कर सरोवर के किनारे
जल की ठंडक महसूस कर
किनारे  की गीली रेत पर
कई आकृतियाँ उकेरता 
रेती से घर बनाना 
फूलों से उसे सजाना 
मन  को आल्हादित करता
नौका  में बैठ कर अकेले 
उस पार  आने जाने में 
जल में क्रीड़ा करने में 
मन मगन होता जाता 
जाने कब चुपके से 
बचपन  पास आ खडा होता 
कागज़ की नौका बना 
जल में प्रवाहित करता 
बढती नौका के साथ साथ 
दौड लगाना चाहता 
रूमाल  से मछली  पकडने का 
आनंद भी कुछ कम नहीं 
खुद को रोक नहीं पाता 
बचपन में ही खो जाता |
आशा








16 जुलाई, 2012

प्यासा मन


प्यासी धरती प्यासा सावन
प्यासा पपीहे का तन मन
घिर आई काली बदरिया
पर वह न आए आज तक
आगमन काली घटाओं का
नन्हीं जल की बूंदों  का
हरना चाहता ताप तन मन का
पर यह हो नहीं पाता
अब है हरियाली ही हरियाली
जहाँ तक नजर डाली
भीगे भीगे से सनोवर
उल्लसित होते सरोवर
फिर भी विरहणी की उदासी
कम होने का नाम न लेती
जब पिया का साथ न होगा
प्यासा मन प्यासा ही रहेगा |
आशा