दुर्गम मार्ग से जाना 
सकरी बीथिका में 
कंटकों से बच पाना 
पर  एक लक्ष्य एक ध्येय 
देता संबल मुझे 
तुझ तक पहुँचने का 
तुझ में रमें रहने का 
मन में व्याप्त आतुरता 
खोजती तुझे 
दीखता जब पहुँच मार्ग 
कोई बंधन, कोई आकर्षण 
या  हो मोह ममता 
सब बोझ से लगते
 उन् सब से तोड़ा नाता 
श्याम सलौने तुझसे 
जब से जोड़ लिया नाता 
खुद  को भी भूल गया 
तुझ  में मन खोया ऐसा 
तेरी  मूरत में डूबा 
साक्षात्कार हो तुझसे 
है बस यही ध्येय मेरा |
आशा 




