प्यासा पपीहे का तन मन
घिर आई काली बदरिया
पर वह न आए आज तक
आगमन काली घटाओं का
नन्हीं जल की बूंदों
का
हरना चाहता ताप तन मन का
पर यह हो नहीं पाता
अब है हरियाली ही हरियाली
जहाँ तक नजर डाली
भीगे भीगे से सनोवर
उल्लसित होते सरोवर
फिर भी विरहणी की उदासी
कम होने का नाम न लेती
जब पिया का साथ न होगा
प्यासा मन प्यासा ही रहेगा |
आशा
विरहनी के मन की दशा को कहती सुंदर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंजितना भी सावन बरस जाये पर
जवाब देंहटाएंजब तक पीया का साथ नहीं होगा
मन प्यासा ही रहेगा
विरह वेदना व्यक्त करती रचना...
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि-
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल मंगलवार (17-07-2012) को चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
सुन्दर भाव |
जवाब देंहटाएंसावन आ गया है |
सादर ||
प्यास तो प्रेम से ही बुझती है....
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना आशा जी.
सादर
अनु
prem ke bina wo har cheej jo pyaas bhujhaane ka prayas karti hai aag me ghee jaisi hee hai..sunder rachna.sadar pranaam ke sath
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना आशा जी..आभार
जवाब देंहटाएंविरहिणी के मन की कसक को बड़ी खूबसूरती से बाँधा है ! बहुत प्यारी रचना !
जवाब देंहटाएंसुंदर!!
जवाब देंहटाएंसावन भी और पिया भी दोनो हैं !
सार्थक रचना
जवाब देंहटाएंमन की प्यास बुझनी मुश्किल होती है ..
जवाब देंहटाएंसमग्र गत्यात्मक ज्योतिष