प्यार  की चाह 
यदि प्यार की एक झलक भी 
उसने  देखी होती खुशियाँ छातीं 
जीवन में रवानी आ जाती 
किसी बात में कमीं न रह पाती |
कभी सोचा न था उसने 
गिरह में झाँक कर कभी देखा न था    
यह परिवर्तन आया  कैसे 
 सूखे गुलाब से भी खुशबू कहीं गुम हो
गई उसमें ज़रा भी गंध न रही 
कहा तो जाता है गुलाब में हैं गुण अनेक  
वे कभी भी उपयोग में लाए जा सकते |
पर देखा कुछ और जो देखा मन में
 मलाल आया बड़ा संताप हुआ
जो जैसा दिखता है वैसा होता नहीं 
यही क्या कम है कि  वह है यहीं 
पर सुगंध कहीं खो गई है | 
यदि वह भी होती यहाँ कितना अच्छा होता 
जीवन की गति तो कम हो जाती 
पर ख़तम न हो पाती |
हुआ उसे एहसास की वह बेनूर हो गई  
मन की शान्ति उसकी कहीं खो गई 
बारम्बार अपनी कमियाँ खोजने लगी 
  उसके  मन
को शांत न रख न पाई |
व्यर्थ ही उलझने बढ़ाई
सामान्य नहीं  हो पाई 
खुद को तो नष्ट किया
अन्य को भी दुःख पहुंचाया
 चैन से जीने नहीं दिया |
आशा सक्सेना   
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