कंगन डोरी हाथों की छूटी नहीं कि
गृहस्ती का कार्य प्रारम्भ किया
तब से अब तक एक लम्हां भी नहीं
मिला सांस लेने को |
हाथों की मेंहदी फीकी पड़ी न थी
ढेर झूठे बर्तनों का देख रहा राह मेरी
भरी आँखों से देखा यह मंजर
हाय रे मेरी किस्मत |
आज तक विश्राम के दो पल न मिले
तुम से मन की बातें करने को
है यह कैसा न्याय प्रभु
क्या मैं ही मिली थी सब अनुभवों के लिए ?
जीवन की एक समस्या जब तक निपटती
दूसरी हाथ फैलाए खड़ी होती
अभी तक अपने लिए चैन की
श्वास लेने का भी समय न मिला |
कोई स्वाद नहीं रहा मुंह में कसेला सा हो गया
क्या लाभ बीते कल पर दृष्टिपात का
अब वह लौट कर न आएगा
काल का पहिया आगे बढ़ता जाएगा
मन का क्लेश बढ़ा कर ही जाएगा |
जीवन है एक कठिन पहेली सा
जिसका हल न मिला अब तक
अंतिम समय आने तक
खुद का अस्तित्व ही भूल जाएगा |
आशा