नित्य नए प्रसंग
देखने सुनाने को मिलते
शान्ति भंग करते
वारों पर वार तीखे प्रहार
कम होने का नाम न लेते
टिकिटों की मारामारी
ऐसी कभी देखी न थी
मिले न मिले
पर जान इतनी सस्ती न थी
टिकिट ना मिला तो जान गवाई
यह तक न सोचा
क्या यह इसका कोई हल है ?
जीवन इतना सस्ता है
सब्जबाग दिखाए जाते
मन मोहक इरादों के
पर जनता भूल नहीं पाती
उनकीअसली चालाकी
वे बस अभी दिखाई देगें
फिर पांच वर्ष दर्शन ना देगें
वादों का क्या ?
उन्हें कौन पूर्ण करता है
अभी गरज है उनकी
कैसी शर्म घर घर जाने में
आगे तो ऐश करना है
केवल अपना घर भरना है |