सुबह से शाम तक
परिवर्तित होते मौसम
में
नज़ारा झील के किनारे
का
नौका की सैर का
था अनुभव अनूठा
यूं तो उम्र का
तकाजा था
फिर भी कोई बच्चा
था मन में छिपा
जो चाहता था
एक एक जगह देखना
हर उस पल को जीना
जो वहां गुजारा |
यूँ तो बहुत ऊंचाई थी
फिर भी मन ना माना
चश्मेशाही तक जा पहुंचा
मीठे जल का स्वाद लिया
वैसा जल पहले
शायद ही कभी पिया |
टहनिया झुक झुक
जातीं
उनके भार से
मन ललचाता
देखने का प्रलोभन
कम न हो पाता |
पहली बार देखी
केशर की खेती
खुशी का ठिकाना न था
कुछ नया जो जाना था
समय कम था
जानना बहुत बाक़ी था |
जिग्यासा शांत न हो
पाई
रंग बदलते चिनार के
पत्ते
हरे पीले फिर लाल
होते पत्ते देखे
पर कारण नहीं खोज
पाई
मन के बच्चे को
समझाया
है यह कुदरत की माया
|
पाव पाव दीपावली, शुभकामना अनेक |
जवाब देंहटाएंवली-वलीमुख अवध में, सबके प्रभु तो एक |
सब के प्रभु तो एक, उन्हीं का चलता सिक्का |
कई पावली किन्तु, स्वयं को कहते इक्का |
जाओ उनसे चेत, बनो मत मूर्ख गावदी |
रविकर दिया सँदेश, मिठाई पाव पाव दी ||
वली-वलीमुख = राम जी / हनुमान जी
पावली=चवन्नी
गावदी = मूर्ख / अबोध
सच है सभी है कुदरत की माया
जवाब देंहटाएंदीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं !
नई पोस्ट आओ हम दीवाली मनाएं!
bahut achchi lagi......
जवाब देंहटाएंवाह! क्या बात है! फिर आई दीवाली
जवाब देंहटाएंआपको दीपावली की बहुत-बहुत हार्दिक शुभकामनाएं
प्रकाशोत्सव के महापर्व दीपादली की हार्दिक शुभकानाएँ।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर प्रस्तुति !
जवाब देंहटाएंदीपावली पर्व की हादिक शुभकामनाए...!
RECENT POST -: दीप जलायें .
आपकी रचना के माध्यम से हमने भी वहाँ के अद्भुत नजारों की घर बैठे ही सैर कर ली ! बहुत सुंदर रचना ! दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें !
जवाब देंहटाएंवाह ... मनमोहक द्रिध्य आँखों के सामने रख दिया इन शब्दों ने ...
जवाब देंहटाएंदीप पर्व की हार्दिक बधाई ..
टिप्पणी हेतु धन्यवाद नासवा जी |आपको भी सपरिवार दीपावली पर शुभ कामनाएं |
हटाएंकल 06/11/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!
सूचना हेतु धन्यवाद यशवंत जी |
हटाएंसूचना हेतु धन्यवाद |अन्नकूट की हार्दिक शुभ कामनाएं आपको भी |
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना .
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