जीवन की शाम कैसे मधुर
हो
आज तक किसी ने बताया नहीं
जितनी कोशिश करने की थी क्षमता
पूरी कोशिश की मन को
स्थिर रखने की |
आज तक मन को संतुलित रखा है
हर बात तुम्हारे आधीन यह भी
समझा
कभी तनाव मन में न रखा
फिर भी न जाने क्यों मन अब बस में नहीं |
कैसे उसे समझाऊँ नियंत्रित
रखूँ
देना शक्ति मुझे मन कमजोर रहूँ ना
इस संसार से बाहर निकल
भव सागर के बंधन तोडूं
कर्तव्यों से मुंह न मोडूं|
आशा