06 अगस्त, 2016

व्यर्थ नहीं यह जीवन

03 अगस्त, 2016

वे लम्हें



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वे लम्हें जो कभी 
साथ गुजारे थे
सिमट कर 
रह गए हैं यादों में
हैं गवाह
 उन जज्बातों  के
जो धूमिल
 तक न हुए हैं
मन मुदित
 होने लगता है
उन लम्हों में
 पहुँच कर
क्या वे लौट कर
 न आएंगे
मुझे सुकून
 पहुंचाने को 
हर याद है 
इतनी गहरी
उससे जुदाई
 मुश्किल है
हैं वे लम्हें 
 वेशकीमती
उनसे दूरी 
नामुमकिन है |
आशा

01 अगस्त, 2016

मुक्तक

वह तेरा ऐसा  दीवाना हुआ
बिन तेरे दिल वीराना हुआ 
वीराने में बहार आए कैसे 
सोचने का एक बहाना हुआ |

चारो ओर छाया अन्धेरा ,उजाले की इक किरण ढूँढते हैं
गद्दारों से घिरे हुए हैं ,ईमान की इक झलक ढूंढते हैं
जो ईमान पर खरी उतारे ,ऐसी इक शख्शियत ढूँढते हैं
जिस दिन उससे रूबरू होंगे ,उस पल की तारीख ढूँढते हैं |
कहाँ नहीं खोजा आपको आखिर आप कहाँ हैं 
क्या लाभ असमय पहुँचाने का ,जताने का कि आप वहां हैं 
अब तक कई लोग पहुंचगे होंगे ,किसा किस को जाने
कोई आए या न आए आपके बिना ,मन को सुकून कहाँ है |
है नटखट नखराली 
चंचल चपल चकोरी 
चाँद सी सूरत सहेजे 
बारम्बार करती बरजोरी |
जाने कितने राज छिपे  हैं इस दिल में 
 होने लगा आग़ाज अब जमाने में 
कैसे दूरी रख पाओगे ए मेरे हमराज 
छोड़ सारे काम काज उलझे रहोगे उनमें |

की ऊँठ की सबारी रेगिस्थान में
दूर तक था जल का अभाव मरुस्थल में
थी सिक्ता कणों की भरमार वहां
दूर दिखाई देती मारीचिका  मरू भूमि में |


आशा