वे लम्हें जो  कभी 
साथ गुजारे थे 
सिमट कर 
रह गए हैं यादों में 
हैं गवाह
 उन जज्बातों   के  
जो धूमिल
 तक न हुए हैं  
मन मुदित 
 होने लगता है 
उन लम्हों में
 पहुँच कर 
क्या वे लौट कर
 न आएंगे 
मुझे सुकून
 पहुंचाने को  
हर याद है 
इतनी गहरी 
उससे जुदाई
 मुश्किल है 
हैं वे लम्हें 
 वेशकीमती 
उनसे दूरी 
नामुमकिन है |
आशा 
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