03 अगस्त, 2013

क्षण परिवर्तन का


व्यस्तता भरे जीवन में
वह ढूंड़ता सुकून
खोजता बहाने
हंसने और हंसाने के |
भौतिकता के  इस युग में
समय यूं ही निकल जाता
पर हाथ कुछ भी न आता
एक दिन ठीक दिखाई देता
दूसरे दिन चारपाई पकड़ता
अधिकाँश सलाहकार बनाते
मुफ्त में तरकीवें बताते
स्वास्थ्य में सुधार के लिए
चाहे कोइ काढ़ा जिसे
 भूले से भी न चखा हो
ना ही अजमाया हो
बहुत स्वास्थ्य वर्धक बताते
वह हर नुस्खा अजमाता
बद से बदतर होता जाता
जब कोइ कारण खोज न पाता
व्यस्तता पर झुंझलाता
लगता जैसे सारी मुसीबतें
बस वही झेल रहा हो
भौतिकता में लिप्त
दूर प्रकृति से होता जाता
घबराता परेशान होता
खोजता खुशी आस पास
पर तब भी प्रकृति के पास जा
अपना दुःख न बाँट पाता |

31 जुलाई, 2013

घर मेरा



घर मेरा गाँव में छोटा सा
पर आँगन उसमें बहुत बड़ा
पेड़ लगे नीम आम के
अमलताश और जामुन के |
तुलसी चौरे पर लहराती
दीप जला पूजी जाती
अपूर्व शान्ति मन में आती 
शाम ढले उस आँगन में |
पंछी आते जाते रहते
मींठी तान सुनाते रहते
सावन आया वर्षा आई
दिग्दिगंत हरियाली छाई |
अमवा पर झूला डलवाया
माँ से लहरिया रंगवाया
पहन उसे खुशी से झूमीं
सखियों के संग जी भर झूली |
बारिश में चूनर भीगी
तन भीगा मन भी भीगा
यूं ही सारा दिन बीत गया
तुझे न आना था ना आया |
तेरा मेरा जन्मों  का नाता
यह भी शायद भूल गया
मेरी आँखें भर भर आईं
यदि आ जाता तो क्या जाता ?
आशा