10 अगस्त, 2013

क्या से कया हो गयी



घुली मिली जल में चीनी सी
सिमटी अपने घर में
गमले की तुलसी सी रही
शोभा घर आँगन की |
ना कभी पीछे मुड़ देखा
ना ही भविष्य की चिंता की
व्यस्तता का बाना ओढ़े
मशीन बन कर रह गयी |
हर पल औरों के लिए जिया
 खुद को समय न दे पाई
अस्तित्व उसका कब कहाँ  खो गया
अहसास तक ना हुआ |
सोई रही   गहरी निंद्रा में
वही  अचानक भ्रम से जागी
जो ढूँढ़ती थी वजूद अपना
केवल चुटकी भर सिन्दूर में |
खाई थीं कसमें दौनों ने
सातों वचन निभाने की
घर में कदम रखने के पहले
बंध गए प्यार के बंधन में |
पर वह भूला सारे वादे
कच्चा धागा कसमों का टूटा
 प्यार का बंधन न रहा
बोझ बन कर रह गया |
अब वह खोज रही खुदको
सोच रही वह
क्या से क्या हो गयी
क्यूं ठगी गयी ?क्या पाया ?
हरियाली सपना हुई
  अस्तित्व  खोजाना व्यर्थ लगा  
रह गयी अब बूढ़े  वृक्ष की
सूखी डाली सी |
आशा

07 अगस्त, 2013

जीवन सुनहरी धूप सा


जीवन सुनहरी धूप सा
हरीतिमा पर छाता जाता
त्याग और समर्पण की
सौगात साथ में लाता |
साथ यदि इनका ना होता
वह अकारथ हो जाता
सदा असफल रहता
आत्म विश्वास न जग पाता |
माँ की ममता ,पिता का प्यार
होते सदा निस्वार्थ
वह त्याग ही तो है इनका
जो संतति  को सक्षम बना
सफलता का मार्ग दिखाता |
भाव समर्पण का
प्रवल प्रभाव अपना छोड़ता
इसके वश में हो कर
पाषाण ह्रदय भी
मोम सा कोमल हो जाता
उमंग से भरता जाता |
उसी की तरंग में
 जाने कितने रूप धरता
रंग रंगीली खुशियाँ लाता
जीवन सवरता जाता |
फिर जाने कब
बुझती मशाल सा मानव
धुंआ धुंआ हो जाता
ना जाने कहाँ
विलुप्त हो जाता |
जिन्दगी वह सुनहरी धूप है
जब आती है बहुत खुशी देती है
जब जाती है
बहुत उदास कर जाती है |
आशा



05 अगस्त, 2013

वादे


तरह तरह के फूल खिले
लोक लुभावन वादों के
बनावटी इरादों के
झरझर झरे टप टप  टपके
बिखरे देश के कौने कौने में
पर एक भी न छू पाया
परमात्मा के चरणों को
रहे दूर क्यूं कि
थे वे कागज़ के फूल
सत्यता उनमें ज़रा भी न थी
केवल वादे थे नेक इरादे न थे
आम आदमी ठगा गया
जालक में फसता गया
उन दिखावटी वादों के
हाथ उसके कुछ भी न आया
अनैतिक इरादों की
चुभन के अलावा
हारा सा ठगा सा
हो हताश देखता रह गया
भविष्य की तस्वीर को  |
आशा