25 अक्तूबर, 2014

और मैं खो जाती हूँ





यह प्यार दुलार जब भी पाया
था वह केवल बचपन ही  
आते जाते लोग भी प्यार से बुलाते
हंसते हंसाते बतियाते खेलते खाते खिलाते
कब समय गुजर गया याद नहीं
बस शेष रहीं यादें
बंधन विहीन उन्मुक्त जीवन
तब कभी भय न हुआ
डर क्या होता है तब न जाना
आज हर पल जिसके साए में रहते
फिर क्यूं न याद करें
उस बीते हुए कल को
जब सब अपने थे गैर कोई नहीं
आज होने लगा है एहसास पराएपन का
दिखावटी प्यार जताते घेरा डाले
न जाने कहाँ की बातें करते
अपनत्व जताते अजनवी चेहरों का
पर कभी भी साथ न देते
मतलब साधना कोई उनसे सीखे
यही विडम्बना जीवन की
खींच  ले जाती मुझे बीते कल में
उनींदी पलकों में पलते बचपन के सपनों में
और मैं खो जाती हूँ यादों की दुनिया में |
आशा


22 अक्तूबर, 2014

एकाधिकार




प्रीत की यह रीत नहीं
अनजान नहीं अब वह भी
फिर भी खोई रहती है
हर पल उस में ही  |


उसे वही चाँद चाहिए
जीने का अरमां  चाहिए
हार अपनी कैसे माने
उसे सहन न कर पाती

बचपन में सब बंट जाता था
क्रोध कभी भी ना आता था
भूले से यदि आया भी
माँ बड़े प्यार से समझाती थी  |

तुम बड़ी हो त्यागी बनो
मेरा तेरा नहीं करो 
सब को देकर ही खाओ 
प्यार पनपता जाएगा |

पर अब सर्वे सर्वा है
कुछ भी छिपा नहीं उससे
अपना प्यार किसी से बांटे
कल्पना तक कर  नहीं पाती
अपना एकाधिकार चाहती |
आशा

20 अक्तूबर, 2014

अदभुद है

 मन की मुराद मिली है
 बड़ी बात है
प्यार की सौगात मिल गयी
अनोखा उपहार है
पर एक सवाल व्यर्थ सा
मन में आया है
ऐसा क्या था  जो तुम्हें
 मुझ तक ले आया
प्यार तो यह है नहीं
 बहुत सच है 
है कोई बंधन पहले का 
या मुझे कोई 
 कर्ज चुकाना है
कभी उधारी की  याद नहीं आता
फिर यह उलझन कैसी
एहसास अनोखा सा है 
लगता है 
अपनी  कहानी में
कोई नया मोड़  आया है
यूं तो है
 कहानी पुरानी 
वही राजा वही रानी
कभी मिलन 
कभी विछोह
कुछ भी तो नया नहीं
क्यूं आज फिर
 दूध में
 उबाल आया है
गोद में बेटी के कदम
धर में पालने का आगमन
पूर्व जन्म के  कर्ज का
अद्भुद एहसास हुआ है
जिसे पूर्ण  करने का
 मन बनाया है |