हरी भरी धरती पर 
पीले पुष्पों  से लदे वृक्ष 
जल में से झांकती 
उनकी छाया 
हिलती डुलती बेचैन दीखती 
अपनी उपस्थिति दर्ज कराती 
तभी पत्थर सट कर उससे 
यह कहते नजर आते 
हमें कम न आंको
हम भी तुम्हारे साथ हैं 
आगया है वासंती मौसम 
उस के रंग में सभी रंग गए 
फिर हम ही क्यूं पीछे रह जाते  
हम भी रंगे तुम्हारे रंग में
जब पर्वत तक न रहे अछूते
दूर से धानी दीखते 
फिर हम कैसे पीछे रह जाते |
आशा 


