खो जाती प्रकृति में
विचरण करती उसके
छिपे आकर्षण में|
वह उर्वशी घूमती
झरनों सी कल कल करती
तन्मय हो जाती
सुरों की सरिता में |
साथ पा वाद्ध्यों का
देती अंजाम नव गीतों को
हर प्रहर नया गीत होता
चुनाव वाद्ध्यों का भी अलग होता
वह गाती गुनगुनाती
कभी क्लांत तो कभी शांत
जीवन का पर्याय नजर आती
लगती ठंडी बयार सी
जहां से गुजर जाती
पत्तों से छन कर आती धूप
सौंदर्य को द्विगुणित करती
समय ठहरना चाहता
हर बार मुझे वहीँ ले जाता
घंटों बीत जाते
लौटने का मन न होता |
वह कभी उदास भी होती
जब मनुष्य द्वारा सताई जाती
सारी शान्ति भंग हो जाती
मनोरम छवि धूमिल हो जाती |
है वही वन की देवी
संरक्षक वनों की
विनाश उनका सह न पाती
बेचैनी उसकी छिप न पाती |
आशा