26 फ़रवरी, 2022

कैसे उसे समझाऊँ

 


मैं कैसे कोई बात करूं

अपने मन की आगाज सुनूँ या 

किसी के मन की बात पर

 ठहाका लगाऊँ मुस्कराऊँ |

उलझन में फंसी हूँ

मेरा मन क्या सोचता  

सोच किस ओर जाता

अभी तक स्पष्ट नहीं है |

यही डावाडोल होते विचार

मन बहका सा है

 कहा नहीं मानता

कैसे उसे समझाऊँ |

सही राह दिखाने के लिए

कुछ तो दृष्टांत हों

जिनका अर्थ निकलता हो

मन नियंत्रित होता हो | 

आशा 



24 फ़रवरी, 2022

छवि दुल्हन की

 

         प्यार की हथकड़ी बेड़ी 

जब लगी बंधन में बंधी  

कष्ट हुआ अनजाने लोगों में  

पर मन में मिठास घुली |

उन हथकड़ियों ने धीरे से  

कब अपनी जगह बनाली

  चूड़ियों खन खन बोलतीं 

अपनी उपस्थिति दर्ज करातीं |

पैर भी सूने नहीं रहते   

उनकी भी बेड़ियाँ बोलतीं

जब भी पैर हिलते

पायल बिछिये के घुँघरू बजते |

उन हथकड़ी बेड़ी  की

 है  एक ही  विशेषता

उनके बंधन हैं ऐच्छिक

कोई जोर जबरदस्ती नहीं  |

जन्म जन्मान्तर तक रखना है

 इन्हें जतन से कहीं खो न जाएं 

 बंधन जब पुराना होगा

 प्यार की मिठास बढ़ेगी |

हाथों पैरों की शोभा

 दो गुनी हो गई  

 सिन्दूर बिंदी का आकर्षण

 चौगुना हुआ जब मेंहदी लगाई |   

सजने सवरने पर

सौंदर्य निखर कर आया है  

अनोखी छवि लाल साड़ी वाली

नई नवेली दुल्हन ही है  |  

आशा   

23 फ़रवरी, 2022

गहराई है रात

गहराई है रात 
कोरोना की लहर 
 फिर से उभार आई है  

हुत उदासी छाई है |

मरीजों की लंबी कतारें 

 दीखती अस्पतालों में  

वहां भी  जगह नहीं है

वे सो रहे जमीन पर | 

जाने कितनी व्यस्थाएं

 की है सरकार ने 

फिर भी संतुष्टि नहीं 

जनता जनार्दन में |

 हर समय कमियाँ उसकी

 गिनवाई जातीं हैं 

कहाँ कमीं रह जाती है

नियम पालन करवाने में |

स्पष्ट निर्देश तक नहीं दिए जाते   

केवल भय बना देने से

 कुछ नहीं होता

 कोई हल नहीं निकलता |

 दिखा कर सारे नियम

स्पष्ट करने होते है

कहना है बहुत सरल 

पर पालन उतना ही जटिल |

मन को मारना पड़ता है

कुछ नया सीखने में   

लौकडाउन में घर पर रहना

लगता उम्र कैद जैसा |  

आशा  

22 फ़रवरी, 2022

अनुग्रह भजन का


 

अचानक  जब नजर पडी

देखी अनौखी वस्तु वस्त्र में लिपटी 

पहले कभी देखी न थी

जानने की उत्सुकता जागी  |

वह  कोई पुस्तक न थी

नाही कोई दस्तावेज

जितनी बार देखा उसे

पता नहीं चल पाया है वह क्या |

उलटा पलता ध्यान से पढ़ा

एकाएक दृष्टि पड़ी लिखा था

 बहुत ही व्यक्तिगत 

उत्सुकता ने की ध्रष्टता  |

सीमा लांघी मर्यादा की

केंची  से काटा खोला लिफाफा 

एक सांस में पढ़ना चाहा

न था आसान उसे पढ़ना |

वे थे पत्र किसी के  लिखे हुए  

भेजे गए अपने इष्ट को

जिन पर किसी का नाम नहीं था

केवल हरी का नाम लिखा था |

मन झूम झूम कर गाने लगा

ॐ हरिओम राधे राधे श्री सरकार

भगवत भजन का था  अनुग्रह 

जो उन पत्रों में किया गया था |

मेरा भी मन आत्मविभोर हो गया 

फिर भूली सुध आई लौट कर 

श्री राम और सीता माता  की 

 अपने मन मोहन की छवि की 

आशा 

21 फ़रवरी, 2022

जटिल प्रश्न



सत्य की प्राण प्रतिष्ठा के लिए

क्या किया जाए

कैसे पूर्ण आहुति हो

किसे आमंत्रित किया जाए |

यह  है बड़ा जटिल प्रश्न

जब सब आएँगे

त्रुटियों को गिनवाएंगे

मन भी आहत होगा

पर  हम भूल जाएंगे |

कहने को अनेक त्रुटियाँ

थीं यहाँ वहां उस कार्य में

उनमें सुधार हो सकता था

 पर जाने क्यों नजर अंदाज हो गया  |

कोई परिवर्तन नहीं कर पाए

 सब ने गलतियों का मखौल उड़ाया

पर उनको तब भी न सुधरवाया |

सुधार करवाना सरल न होता

बार बार देखो पढ़ो पर  

वे आँखों की ओट हो जाती हैं  

 खोजो उन्हें सुधार जब करना हो

कहीं लुप्त हो जाती हैं  |

यह मेरे ही साथ होता क्यूँ

मन फिर भी सोचता

नहीं ऐसा नहीं है

मैंने भी विचार किया है |

मैं अकेली नहीं हूँ

इस झमेले में

 मैंने किसी का क्या बिगाड़ा   

 किसी ने नहीं इशारा दिया मुझे |

मैंने सब सौंप  दिता है

 अब परमात्मा के हाथ में

सुख मिले या दुःख किसी से

है अधिक की अपेक्षा भी नहीं |

यही है नियति मेरी

इसमें मुझे कोई शक नहीं है

जीवन के दो पहलू है

किसी से भी दूरी नहीं है |

आशा


20 फ़रवरी, 2022

हाइकु


 

१-कहीं जाने में

बुराई क्या हुई है

जान न पाई

२-कितनी बाधा

रोकटोक सब की

मैं क्या सोचती 

३- रहूँ सतर्क 

किसी पर विश्वास

रखूँ न रखूँ

४-वो एक दिन

हो जाएगी समाप्त

 मृत्यु के साथ 

५- काला कागला

बैठ कर छत पे

किसे बुलाता

६-कोयल काली

मधुर कंठ वाली

मन रिझाती

७-मेरा है गीत 

लगता प्यारा मुझे

 सुनो  न सुनो  

आशा

किसी के छद्म प्यार में


 

किसी के छद्म प्यार में

मन उसका ऐसा उलझा   

कोई हल न सूझा अब कहाँ जाए

दिल की सुने या मस्तिस्क की |

अब पछता रही है

उसे वह समझ न पाई

अब जान गई था वह एक छलावा 

उस भूल पर कैसे पर्दा डाले |

मन बहुत दुखी हुआ है

पैर पीछे नहीं लौटते

अब कहीं की न रही

यह किससे कहे |

जब पैर डगमगाए थे 

किसी ने चेताया नहीं

ज़रा भी समझाया नहीं

डूबी जब पंक में किसी ने बचाया नहीं |

समय हाथ से फिसल गया 

अब हाथ न आएगा

नष्ट हुई वह किस हद तक

 कोई भी जान न पाएगा |

अपनी गलती का एहसास है उसे

यह वह किस मुंह से कहे

 अपने आप पर शर्मिन्दा है

यह भी नहीं कह पाती किसी से |

वह मन से बहुत  दुखी है

यह भूल नहीं पाती पछताती है   

यही बात बारम्बार मन को सालती रहती 

कोई न मिला जो उसे समझे समझाए |

आशा