अचानक जब नजर पडी
देखी अनौखी वस्तु वस्त्र में लिपटी
पहले कभी देखी न थी
जानने की उत्सुकता
जागी |
वह कोई पुस्तक न थी
नाही कोई दस्तावेज
जितनी बार देखा उसे
पता नहीं चल पाया है वह
क्या |
उलटा पलता ध्यान से पढ़ा
एकाएक दृष्टि पड़ी लिखा था
बहुत ही व्यक्तिगत
उत्सुकता ने की ध्रष्टता |
सीमा लांघी मर्यादा की
केंची से काटा खोला लिफाफा
एक सांस में पढ़ना चाहा
न था आसान उसे पढ़ना |
वे थे पत्र किसी के लिखे हुए
भेजे गए अपने इष्ट को
जिन पर किसी का नाम नहीं था
केवल हरी का नाम लिखा था |
मन झूम झूम कर गाने लगा
ॐ हरिओम राधे राधे श्री
सरकार
भगवत भजन का था अनुग्रह
जो उन पत्रों में किया गया था |
मेरा भी मन आत्मविभोर हो गया
फिर भूली सुध आई लौट कर
श्री राम और सीता माता की
अपने मन मोहन की छवि की
आशा
आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (23-02-2022) को चर्चा मंच "हर रंग हमारा है" (चर्चा अंक-4349) पर भी होगी!
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सुप्रभात
जवाब देंहटाएंआभार सर मेरी रचना को आज के अंक में स्थान देने के लिए |
भक्तिरस में डूबी सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंवाह ! सुन्दर सृजन !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आपका बहुत टिप्पणीव के लिए
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