सत्य की प्राण प्रतिष्ठा के लिए
क्या किया जाए
कैसे पूर्ण आहुति हो
किसे आमंत्रित किया जाए |
यह है बड़ा जटिल प्रश्न
जब सब आएँगे
त्रुटियों को गिनवाएंगे
मन भी आहत होगा
पर हम भूल जाएंगे |
कहने को अनेक त्रुटियाँ
थीं यहाँ वहां उस कार्य में
उनमें सुधार हो सकता था
पर जाने क्यों नजर अंदाज हो गया |
कोई परिवर्तन नहीं कर पाए
सब ने गलतियों का मखौल उड़ाया
पर उनको तब भी न सुधरवाया |
सुधार करवाना सरल न होता
बार बार देखो पढ़ो पर
वे आँखों की ओट हो जाती हैं
खोजो उन्हें सुधार जब करना हो
कहीं लुप्त हो जाती हैं |
यह मेरे ही साथ होता क्यूँ
मन फिर भी सोचता
नहीं ऐसा नहीं है
मैंने भी विचार किया है |
मैं अकेली नहीं हूँ
इस झमेले में
मैंने किसी का क्या बिगाड़ा
किसी ने नहीं इशारा दिया मुझे |
मैंने सब सौंप दिता है
अब परमात्मा के हाथ में
सुख मिले या दुःख किसी से
है अधिक की अपेक्षा भी नहीं |
यही है नियति मेरी
इसमें मुझे कोई शक नहीं है
जीवन के दो पहलू है
किसी से भी दूरी नहीं है |
आशा
वाह ! बढ़िया रचना ! आजकल ज़माना मुँहदेखी बातें करने वालों का है ! आलोचना और आलोचकों से सब कतराते हैं !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आपका बहुत टिप्पणीव के लिए
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