21 फ़रवरी, 2022

जटिल प्रश्न



सत्य की प्राण प्रतिष्ठा के लिए

क्या किया जाए

कैसे पूर्ण आहुति हो

किसे आमंत्रित किया जाए |

यह  है बड़ा जटिल प्रश्न

जब सब आएँगे

त्रुटियों को गिनवाएंगे

मन भी आहत होगा

पर  हम भूल जाएंगे |

कहने को अनेक त्रुटियाँ

थीं यहाँ वहां उस कार्य में

उनमें सुधार हो सकता था

 पर जाने क्यों नजर अंदाज हो गया  |

कोई परिवर्तन नहीं कर पाए

 सब ने गलतियों का मखौल उड़ाया

पर उनको तब भी न सुधरवाया |

सुधार करवाना सरल न होता

बार बार देखो पढ़ो पर  

वे आँखों की ओट हो जाती हैं  

 खोजो उन्हें सुधार जब करना हो

कहीं लुप्त हो जाती हैं  |

यह मेरे ही साथ होता क्यूँ

मन फिर भी सोचता

नहीं ऐसा नहीं है

मैंने भी विचार किया है |

मैं अकेली नहीं हूँ

इस झमेले में

 मैंने किसी का क्या बिगाड़ा   

 किसी ने नहीं इशारा दिया मुझे |

मैंने सब सौंप  दिता है

 अब परमात्मा के हाथ में

सुख मिले या दुःख किसी से

है अधिक की अपेक्षा भी नहीं |

यही है नियति मेरी

इसमें मुझे कोई शक नहीं है

जीवन के दो पहलू है

किसी से भी दूरी नहीं है |

आशा


2 टिप्‍पणियां:

  1. वाह ! बढ़िया रचना ! आजकल ज़माना मुँहदेखी बातें करने वालों का है ! आलोचना और आलोचकों से सब कतराते हैं !

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  2. धन्यवाद आपका बहुत टिप्पणीव के लिए

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