कहता हूँ मैं एक कहानी
उज्जैनी नगरी मैं जानी
पेड़ पर बैठा एक युवक
हाथ में लिए कुल्हाड़ी
जिस डाल पर बैठा था
उसे ही काट रहा था |
ज्ञानी तरसे उसकी अक्ल पर
धीरे से उसे उतारा
कुछ प्रश्न किये
वह मूक रहा |
इसी बात से हो उत्साहित
पहुंचे राज दरवार में
शास्त्रार्थ का न्योता
राजकुमारी विद्योत्तमा को भिजवाया
जो बैठी थी प्रण किये
होगा निपुण शास्त्रों में जो
वही पति होगा उसका |
शास्त्रार्थ होने लगा
काली दास के मौन इशारे
ज्ञानी की उन पर व्याख्या ने
काली दास को विजयी बनाया |
वह राजकुमारी व्याह कर लाया
पाकर निपट गवार अनपढ़ पति
विदूषी थी बहुत दुखी
डाटा फटकारा और घर से बेघर किया
वह जंगल जंगल भटका
ज्ञान अर्जित किया
यही कहानी है उसकी
जो बाद में प्रसिद्ध महाकवि हुआ
उज्जैनी की शान हुआ
राजा विक्रम की राजसभा में
प्रमुख महाकवि कालीदास हुआ |
आशा