जलता दिया 
जलता दिया 
तम तभी हरता 
जब स्नेह हो |
रीतते रिश्ते 
मन दुखी करते 
नैन हें  नम |
(३) 
जश्न ही मना 
प्रातः से संजा तक 
ना कर काम |
(४)
फंसा जाल में 
धूमिल होती आशा 
शेष निराशा |
(५)
 
जीवन धन 
नाम निराशा नहीं 
आशा ही आशा |
(६)
 
सुख क्षणिक 
आभास नहीं होता 
दुखी संसार |
(7) 
दुःख बसा है 
रग रग में तेरे 
कैसे सुखी हो |
(8)
सूनी गलियाँ 
रंग  रसिया बिन 
होली कैसे हो |
(9) 
 
होली में रंगी 
भीगी लट उलझे 
रंग छूटे ना |
आशा
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
          
      
 
  
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
दर्द भरे हाइकु !!
जवाब देंहटाएंसुंदर !!
बहुत सुन्दर हायकू.
जवाब देंहटाएंनई पोस्ट : सांझी : मिथकीय परंपरा
वाह सभी हायकू..बहुत सुन्दर बने हैं...
जवाब देंहटाएंबढ़िया प्रस्तुति आदरेया-
जवाब देंहटाएंआभार-
वाह !
जवाब देंहटाएंटिप्पणी हेतु धन्यवाद |
हटाएंसुन्दर हाइकु
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रस्तुति को कल की बुलेटिन विश्व हिन्दी दिवस और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
जवाब देंहटाएंसूचना हेतु धन्यवाद |
हटाएंबहु रंगी दुनिया पर सुन्दर हाइकु !
जवाब देंहटाएंनई पोस्ट आम आदमी !
नई पोस्ट लघु कथा
सूचना हेतु धन्यवाद
जवाब देंहटाएंकल 12/01/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!
सूचना हेतु धन्यवाद यश जी |
हटाएंजीवन के रंगों से रंगे सुन्दर और प्रभावी हाइकु...
जवाब देंहटाएंधन्यवाद संध्या जी |
हटाएंबहुत सुंदर हायकु
जवाब देंहटाएंटिप्पणी हेतु धन्यवाद |
हटाएंसुंदर, सार्थक, सशक्त हाईकू ! पूरक चित्रों के साथ और प्रभावी बन पड़े हैं ! अनन्त शुभकामनायें !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना |
हटाएंबहुत सुंदर..:-)
जवाब देंहटाएंसुन्दर अभिव्यक्ति...
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