25 अप्रैल, 2020

फिक्र




     हो किस बात की फिक्र
मन सन्तुष्टि से  भरा हुआ है
 कोई इच्छा नहीं रही शेष
ईश्वर ने भरपूर दिया है |
है वह इतना मेहरवान कि
कोई नहीं गया भूखा मेरे द्वार से
होती चिंता चिता के सामान
पञ्च तत्व में मिलाने का
एहसास भी नहीं होता
कोई कष्ट नहीं होता |
जब जलने लगती चिता
आत्मा हो जाती स्वतंत्र
फिर चिंता फिक्र जैसे शब्द
लगने लगते निरर्थक |
तभी मैं फिक्र नहीं पालती
मैं हूँ संतुष्ट उतने में ही
जो हाथ उठा कर दिया प्रभू ने
और अधिक की लालसा नहीं |
 चिंता  चैन से सोने नहीं देती
हर समय बेचैनी बनी रहती
यही तो एक शिक्षा मिली है
 खुद पर हावी मत होने दो |
जितना मिले उसी को अपना मानो
मन को ना विचलित करो
तभी खुशी से रह पाओगे
सफल जीवन जी  पाओगे |  
शा   

24 अप्रैल, 2020

आया महीना रमजान का

 आज से हुआ प्रारम्भ पवित्र रमजान का महीना
है बहुत कठिन परिक्षा का काल अब एक मांह तक
 भूख प्यास कुछ नहीं लगती इबादत के समक्ष 
यही परख करता है सच्चे नमाजी मुसलमान की 
पांच वक्त की नमाँज अता करता है जकात देता है
 कठिनाई झेल लेता है आल्लाह की देन समझ |
आशा

22 अप्रैल, 2020

गृहणी



शाम ढले उड़ती धूल
जैसे ही होता आगाज
चौपायों के आने का
सानी पानी उनका करती |
सांझ उतरते ही आँगन में
दिया बत्ती करती
और तैयारी भोजन की |
चूल्हा जलाती कंडे लगाती
लकड़ी लगाती
फुकनी से हवा देती
आवाज जिसकी
जब तब सुनाई देती |
छत के कबेलुओं से
छनछन कर आता धुंआ
देता गवाही उसकी
चौके में उपस्थिति की |
सुबह से शाम तक
घड़ी की सुई सी
निरंतर व्यस्त रहती |
किसी कार्य से पीछे न हटती
गर्म भोजन परोसती
छोटे बड़े जब सभी खा लेते
तभी स्वयं भोजन करती |
कंधे से कंधा मिला
बराबरी से हाथ बटाती
रहता सदा भाव संतुष्टि का
विचलित कभी नहीं होती |
कभी खांसती कराहती
तपती बुखार से
व्यवधान तब भी न आने देती
घर के या बाहर के काम में |
रहता यही प्रयास उसका
किसी को असुविधा न हो |
ना जाने शरीर में
कब घुन लग गया
ना कोइ दवा काम आई
ना जंतर मंतर का प्रभाव हुआ
एक दिन घर सूना हो गया
रह गयी शेष उसकी यादें |
आशा

21 अप्रैल, 2020

हम दो किनारे नदिया के

 





हमने अपनी  जीवन   नैया  डाली
गहरी   नदिया  के जल  में  
बहाव के साथ बहती गई
फिर भी पार नहीं पहुँच पाई |
अकारण सोच विचार में उलझी रही
पर खुद पर था  अटूट विश्वास
कोई  कठिनाई जब होगी
 उसे सरलता से हल कर लूंगी |
अचानक एक ख्याल मन में आया
नदी के दौनों किनारे मिलते ही हैं कहाँ ?
कभी तो कहीं मिलते होंगे
सामंजस्य आपस में होगा तब ना |
बहुत दूर निकल आई थी
पर कहीं मिलन नजर नहीं आया
जब  गुज़री एक सेतु के नीचे से  
 वहां  तनिक ठहरना चाहा|
फिर वही प्रश्न मन में आया 
आगे बढी पीछे पलटी देखा विगत को झाँक
 मुझे ही सम्हल कर चलना था
 अपेक्षा दूसरे से कैसी |
अभी तक कोई किनारा
पास आता नहीं नजर  आया  
तभी समझ आया
 जीवन का एक नया सत्य |
 हमसफर  साथ चलते हैं
 समानांतर रेखाओं  जैसे    
पर कभी मिल नहीं पाते कई कारणों  से
कभी होती तकरार कभी अहम् का वार|
किनारों को   मिलाए रखते के लिए
कल कल बहती जलधारा
दौनों के बाच से 
बच्चे ही बन जाते सेतु दौनों  के बीच|
लहरें अटखेलियाँ करती दौनों से
नदी के दौनों किनारे 
कभी पास नहीं आते
रहते है समानांतर सदा ही इसी  तरह |
                                             आशा

19 अप्रैल, 2020

चाहे किसी का बलिदान रहा हो

 
 चाहे  किसी का भी बलिदान रहा हो
अब तो  आजाद देश  हमारा है 
हम हैं स्वतंत्र देश के नागरिक
जिसकी हमें रक्षा करनी है |
बीते कल को क्यूँ याद करें
जो बीत गया बापिस नहीं आने वाला
देश को संकट से मुक्त कराना है
प्राकृतिक आपदा से बचाना है
नियमों का गंभीरता से पालन कर
देश की   हमें रक्षा करनी है |
है बहुत बड़ी जिम्मेदारी कंधे पर 
जिसका निर्वाह हमें करना है 
यह आपदा है या महामारी है
इसका कोई इलाज नहीं 
पूरे विश्व में फैली है |
नियमों का सख्ती से पालन करना
एक यही विकल्प है हमारे पास
उसी को निभाए जाएंगे
यही संकल्प हमारा है |
आशा