हो किस बात की फिक्र
मन सन्तुष्टि से भरा हुआ है
कोई इच्छा नहीं रही शेष
ईश्वर ने भरपूर दिया है |
है वह इतना मेहरवान कि
कोई नहीं गया भूखा मेरे द्वार से
होती चिंता चिता के सामान
पञ्च तत्व में मिलाने का
एहसास भी नहीं होता
कोई कष्ट नहीं होता |
जब जलने लगती चिता
आत्मा हो जाती स्वतंत्र
फिर चिंता फिक्र जैसे शब्द
लगने लगते निरर्थक |
तभी मैं फिक्र नहीं पालती
मैं हूँ संतुष्ट उतने में ही
जो हाथ उठा कर दिया प्रभू ने
और अधिक की लालसा नहीं |
चिंता चैन से सोने नहीं देती
हर समय बेचैनी बनी रहती
यही तो एक शिक्षा मिली है
खुद पर हावी मत होने दो |
जितना मिले उसी को अपना मानो
मन को ना विचलित करो
तभी खुशी से रह पाओगे
सफल जीवन जी पाओगे |
आशा
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शनिवार 25 एप्रिल 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसूचना हेतु आभार सर |
हटाएंबहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंधन्यवाद ओंकार जी टिप्पणी के लिए |
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जवाब देंहटाएंजय मां हाटेशवरी.......
आप को बताते हुए हर्ष हो रहा है......
आप की इस रचना का लिंक भी......
26/04/2020 रविवार को......
पांच लिंकों का आनंद ब्लौग पर.....
शामिल किया गया है.....
आप भी इस हलचल में. .....
सादर आमंत्रित है......
अधिक जानकारी के लिये ब्लौग का लिंक:
https://www.halchalwith5links.blogspot.com
धन्यवाद
सूचना हेतु आभार सहित धन्यवाद सर |
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (26-04-2020) को शब्द-सृजन-18 'किनारा' (चर्चा अंक-3683) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
--
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सुप्रभात
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सर टिप्पणी के लिए |
सूचना हेतु आभार सर |
जवाब देंहटाएंक्या बात है ! ज्ञानोदय के इस पल का जश्न मनाना चाहिए ! सुन्दर, सकारात्मक, सार्थक रचना !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |
हटाएंसार्थक लेखन
जवाब देंहटाएंधन्यवाद अनीता जी टिप्पणी के लिए |
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