तुम किसी को पत्र लिखो न लिखो
किसी को क्या फर्क पड़ता है
पर मुझे बहुत फर्क पड़ता है
क्यों कि तुम्हारे लिखे हुए पत्र के
जब तुम कभी लिखना भूल जाते हो
या अधिक व्यस्त रहते हो और पत्र नहीं लिखते
मैं बहुत उदास हो जाती हूँ |
मन में भय उपजने लगता है
कहीं कुछ कमीं तो नहीं रही मुझमें
जो तुम्हें मेरी याद न आई
पर मिलने पर कारण बताया जब
मन बहुत लज्जित हुआ |
फिर मन में प्रश्नों का अम्बार लगा
क्या इतना भी आत्म बल नहीं रहा मुझमें
विश्वास खुद पर कैसे न रहा ?
या कोई कमीं पैदा हुई है मेरे आकर्षण में
अभी तक सोच में डूबी हूँ
पर कारण तक खोज न पाई |
यदि मेरा मनोबल मेरा साथ न देता
इतने दिनों का साथ
कैसे छूटने के कगार पर होता
हमारा मनोबल है सच्चा साथी हम दोनों का
जो एक साथ बांधे है हमें कच्ची डोर से |
दिखने में तो बहुत कमजोर दिखती ग्रंथि
आशा