08 सितंबर, 2012

शुभ कामनाएं

 मेरी दूसरी पुस्तक अंतःप्रवाह के लिए परम आदरणीय शिक्षावित सुश्री इंदु हेबालकर की शुभकामनाएं आप सब से बांटना चाहती हूँ :-
शुभकामनाएं
अन्तः प्रवाह कविता संग्रह में मानव जीवन केअन्तः प्रवाह पर प्रकाश डालने का कवियित्री का प्रयास 
सराहनीय है |बधाई आशा जी को कि वह इस अंतःप्रवाह को अनुभूत कर सकीं और उसकी भावाव्यक्ति 
शब्दों में कर सकीं कविताओं के माध्यम से |
इस संग्रह में अंतर्धारा के संगम के स्त्रोत से बहती विभिन्न धाराओं की अभिव्यक्ति है -संगम से उत्पन्न
विभिन्न धाराएं ,उनमें निरंतर बहती जीवन नैया ,विभिन्न भावनाओं की अनुभूतियां हैं |जीवन नैया में चप्पू चलाना ,हिचकोले खाना ,डगमगाना ,और फिर भी तट तक पहुँच जाना ,यही जीवन संघर्ष है और विभिन्न अनुभूत जीवन धाराएं हैं |जीवन की गति में प्रतिबन्ध लगना ,निष्कासन ,सहायता न मिलना ,अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर बहस फिर भी न रुकना प्रवाहमान होना भावना की अभिव्यक्ति करना ,यही जीवन की अंतर्धारा से उत्पन्न विभिन्न प्रवाह हैं ,दृश्यमान प्रवाह है मानव जीवन में |
          शिक्षकीय व्यवसाय की धारा में प्रवाहित हमारी नौकाएं एक दूसरे को निहारतीं ,संपर्क में रहीं शासकीय उच्चतर माँ. वि .दौलत गंज उज्जैन में व्याख्याता  (अंग्रेजी )के पद पर कार्य रत रहीं आशा जी ने अपनी माता जी श्रीमती ज्ञानवती सक्सेना "किरण"से काव्य सृजन करने की जन्मजात प्रेरणा प्राप्त की और सेवा निवृत्ति के बाद कम्प्युटर पर शब्द रूप में अभिव्यक्ति करती रहीं  हैं |मैं भी सेवा निवृत्ति के बाद उनके ब्लॉग "आकांक्षा "पर
लिखित कविताओं का आनंद उठाती रही |और एक दिन कहा आशा जी अपनी कविताओं को पुस्तक रूप में छापो ना |प्रसिद्धि के लिए नहीं अपनी आत्मसंतुष्टि के लिए |बधाई कि वह उन्होंने कर दिखाया |यह उनका दूसरा काव्य संग्रह है |इसके लिए शतशः  बधाई शुभकामनाएं और आशीर्वाद |बधाई के पात्र है श्री एच  .के. सक्सेना जी  भी जिन्होंने अपनी पत्नी को प्रोत्साहित किया और सहायता की पुस्तकों की  प्रकाशन प्रक्रिया  में |
   मैं और एह .के.सक्सेना सक्सेना शासकीय स्नातकोत्तर शिक्षा महा विद्यालय में वर्षों तक कार्यरत रहे और आशा जी हमारे शिक्षा महाविध्यालय की छात्रा रहीं |दौनों को सृजनात्मक प्रयास के लिए बधाई और आशीर्वाद |
   अन्तः प्रवाह काव्यसंग्रह में जीवन के विभिन्न आयामों की अभिव्यक्ति है |जीवन के ढलान पर 'जीवन की एक शाम ' ,'चुकाती जिंदगी की अंतिम किरण'की चुभन और उम्र की दस्तक ,जीवन के दरवाजे पर कुछ पंक्तियाँ मन को उद्द्वेलित करती हैं |जीवन के सत्य की और इंगित करती हैं |कविताओं की कुछ पंक्तियों का अवलोकन करें |
जिंदगी
         यह जिंदगी की शाम अजब सा सोच है 
कभी है होश  तो कभी खामोश है 
हाथों में था जो दम 
 अब वे कमजोर हैंचलना हुआ दूभर 
बैसाखी की जरूरत और है 
अपनों  का है यह आलम 
अधिकांश पलायन कर गए 
बचे  थे जो 
अवहेलना कर निकल गए 
और हम बीते कल का
 फसाना बन कर रह गए ||

अतीत
अतीत की और झांकती हुई कवियित्री कहती हैं :-
चुकती जिंदगी की अंतिम किरण 
सुलगती  झुलसती तीखी चुभन 
पर नयनों में साकार 
सपनों  का मोह जाल
दिला गया याद मुझे 
बीते हुए कल की |
जिंदगी को भरपूर जिया है में ये पंक्तियाँ देखिये -
मैंने जिंदगी को 
कई कौणों  से देखा है
हर कौण है विशिष्ट 
हर रंग निराला है 

    कवयित्री ने काव्य को सरल सरल साहित्यिक शब्दों में अभिव्यक्त कर पुस्तक अंतःप्रवाह को प्रभावशाली बनाया है |आपको हार्दिक आशीर्वाद |इसी प्रकार लिखती रहें और "एक छोटी पतंग रंग विरंगी न्यारी न्यारी उड़ाती रहें "कठिन पहेली से रिश्तए का हल बताती रहें |शतशःबधाई आपकी अन्तः प्रेरणा को "अंतःप्रवाह की धारा को ||
सुश्री इन्दु हेबालकर 
सेवा निवृत्त संचालक शिक्षा संस्थान म.पर.
एवं प्राचार्य शासकीय स्नातकोत्तर शिक्षा महा विद्यालय 
भोपाल ( म.प्र.)



05 सितंबर, 2012

आंसू



आंसुओं का कोई
रंग नहीं होता
रहते रंग हीन सदा
चाहे जब भी आएं
हंसते हंसते
या दुख में बह जाएँ
स्वाद उनका रहता
सदा एकसा खारा
हों वे चाहे खुशी के
या गम की देन
समय भी नहीं
 निर्धारित उनका
सुबह हो शाम हो या
गहराती रात हो
कारण उनके आने का
अनिश्चित होता
कभी वे  बेमतलब भी
 आँखें नम कर जाते
अकारण टपक जाते
पर रूप उनका
रहता सदा एकसा
टप टप टपकते
झर झर झरते
गोल गोल मोटे मोटे
बाहर आने का
 बहाना खोजते |
आशा

03 सितंबर, 2012

शिक्षा एक विचार



व्यक्ति के सर्वांगीण विकास के लिए शिक्षा का बहुत महत्व है |शिक्षा एक ऐसी प्रक्रिया है जो अनवरत चलती रहती है जन्म से मृत्यु तक |जन्म से ही शिक्षा प्रारम्भ हो जाती है |शिशु अवस्था में माता बच्चे की पहली गुरु होती है |यही कारण है कि संस्कार जो मिलते हैं मा से ही मिलते हैं |जैसे जैसे वय  बढती है  बच्चे पर और लोगों का प्रभाव पडने लगता है |आसपास का वातावरण भी उसके विकास में एक महत्वपूर्ण  कारक होता है |
स्कूल जाने पर शिक्षक उसका गुरू होता है |बच्चों में अंधानुकरण की प्रवृत्ति होती है
जो उन्हें सब से अच्छा लगता है वे उसी का अनुकरण करते हैं और उस जैसा बनना चाहते हैं |
यही कारण है कि बच्चा अपने शिक्षक का कहा बहुत जल्दी  मानता है |
      जब वह कॉलेज में पहुंचता है तब मित्रों से बहुत प्रभावित होता है और उनकी संगत से बहुत कुछ सीखता है |इसी लिए तो कहते हैं :-
         पानी पीजे छान कर ,मित्रता कीजे जान कर
शिक्षा में यात्रा का भी बहुत महत्वपूर्ण योगदान है |यात्रा करने से भी कुछ कम सीखने को नहीं मिलता |कई लोगों के मिलने जुलने से ,विचारों के आदान प्रदान से ,कई संस्कृतियों को देखने से ,प्रकृति के सानिध्य से बहुत कुछ सीखने को मिलता है  |  केवल वैज्ञानिक सोच ,अनुकरण ,बौद्धिक विकास ही केवल शिक्षा नहीं है |सच्ची शिक्षा है अपने आप को जानना सुकरात ने कहा था
कि सही शिक्षा है know thyself “ चाहे जितना पढ़ा लिखा पर यदि वह अपने आपको  न जान् पाए तो सारी शिक्षा व्यर्थ है |
यही कारण है कि शिक्षक से यह अपेक्षा की जाती है कि वह बच्चे में छिपे
सद् गुणों को  समझे और उनके विकास में सहायक हो |वह बालक को,उसके गुणों को , सीपी में छिपे मोती को बाहर निकाले और तराशे ऐसा कि बालक जान पाए कि आज के दौर में वह कहाँ खडा है और उसका सम्पूर्ण विकास कैसे  हो सकता है |
आशा