28 जनवरी, 2012

स्वर नहीं मिलते

कुछ शब्दों को
स्वर नहीं मिलते
यदि भूले से मिल भी गए
कहीं पनाह नहीं पाते |
वे होते मुखर एकांत पा
पर होने लगते गुम
समक्ष सबके |
ऐसे शब्दों का लाभ क्या
हैं दूर जो वास्तविक धरा से
हर पल घुमड़ते मन के अंदर
पर साथ नहीं देते समय पर |
स्वप्नों में होते साकार
पर अभिव्यक्ति से कतराते
शब्द तो वही होते
पर रंग बदलते रहते
वे जिस रंग में रम जाते
वहीँ ठिठक कर रह जाते
स्वर कहीं गुम हो जाते |
आशा






















26 जनवरी, 2012

बेटी

बेटी अजन्मी सोच रही 
क्यूँ  उदास माँ दिखती है 
जब  भी कुछ जानना चाहूँ 
यूँ  ही टाल देती है|
रह ना पाई कुलबुलाई 
समय देख प्रश्न  दागा 
क्या  तुम मुझे नहीं चाहतीं 
मेरे  आने में है दोष क्या 
क्यूँ  खुश दिखाई नहीं देतीं ?
 माँ  धीमे से मुस्कुराई 
पर  उदासी न छिपा पाई 
बेटी  तू यह नहीं जानती 
सब  की चाहत है बेटा 
जब  तेरा आगमन होगा 
सब  से मोर्चा   लेना होगा 
यही  बात चिंतित करती 
मन  में उदासी भरती |
जल्दी  से ये दिन बीते 
खिली  रुपहली धूप 
आज  मेरे आँगन में 
गूंजी  तेरी किलकारी 
इस  सूने उपवन में
मिली  खुशी अनूप 
तुझे  पा लेने में |
देखा  सोच बदलता मैनें 
अपने  ही घर में |
कितना  सुखमय है जीवन 
आज  में जान पाई 
रिश्तों  की गहराई 
यहीं  नजर आई |
तेरी  नन्हीं बाहों की उष्मा
और प्यार भरी सुन्दर अँखियाँ 
स्वर्ग कहीं से ले  आईं 
मेरे  मुरझाए जीवन में |
आशा




































24 जनवरी, 2012

अपेक्षा

हूँ स्वतंत्र ,मेरा मन स्वतंत्र
नहीं स्वीकार कोइ बंधन
जहां चाहता वहीं पहुंचता
उन्मुक्त भाव से जीता
नियंत्रण ना कोइ उस पर
निर्वाध गति से सोचता
जब मन स्वतंत्र
ना ही नियंत्रण सोच पर
फिर अभिव्यक्ति पर ही रोक क्यूं ?
जब भावना का ज्वार उठता
अपना पक्ष समक्ष रखता
तब वर्जना सहनी पडती
अभिव्यक्ति परतंत्र लगती |
कानूनन अधिकार मिला
अपने विचार व्यक्त करने का
कलम उठाई लिखना चाहा
कारागार नजर आया |
अब सोच रहा
है यह किसी स्वतंत्रता
अधिकार तो मिलते नहीं
कर्तव्य की है अपेक्षा |
आशा