नहीं स्वीकार कोइ बंधन
जहां चाहता वहीं पहुंचता
उन्मुक्त भाव से जीता
नियंत्रण ना कोइ उस पर
निर्वाध गति से सोचता
जब मन स्वतंत्र
ना ही नियंत्रण सोच पर
फिर अभिव्यक्ति पर ही रोक क्यूं ?
जब भावना का ज्वार उठता
अपना पक्ष समक्ष रखता
तब वर्जना सहनी पडती
अभिव्यक्ति परतंत्र लगती |
कानूनन अधिकार मिला
अपने विचार व्यक्त करने का
कलम उठाई लिखना चाहा
कारागार नजर आया |
अब सोच रहा
है यह किसी स्वतंत्रता
अधिकार तो मिलते नहीं
कर्तव्य की है अपेक्षा |
आशा
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जवाब देंहटाएंखुबसूरत रचना.....
जवाब देंहटाएंअब सोच रहा
जवाब देंहटाएंहै यह किसी स्वतंत्रता
अधिकार तो मिलते नहीं
कर्तव्य की है अपेक्षा |
sach me ...bilkul theek likha hai ...
sarthak rachna ....
जब मन स्वतंत्र
जवाब देंहटाएंना ही नियंत्रण सोच पर
फिर अभिव्यक्ति पर ही रोक क्यूं ?
bahut khoob
हूँ स्वतंत्र ,मेरा मन स्वतंत्र
जवाब देंहटाएंनहीं स्वीकार कोइ बंधनWAAH.
सत्य है आजकल अभिव्यक्ति पर भी कड़े पहरे हैं ! स्वतन्त्रता तो कहने भर की है ! सुन्दर रचना !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति है आपकी.
जवाब देंहटाएंकई बार आपके ब्लॉग पर आने की कोशिश की.
खुल ही नही रहा था आपका ब्लॉग.
न जाने क्या अड़चन थी.
आपकी प्रस्तुति सोचने के लिए मजबूर करती है.
आभार
समय मिलने पर मेरे ब्लॉग पर आईयेगा,आशा जी.
bahut sundar aasha ji.......
जवाब देंहटाएंफिर अभिव्यक्ति पर ही रोक क्यूं ?
anmol line hai ye.......
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएं--
गणतन्त्रदिवस की पूर्ववेला पर हार्दिक शुभकामनाएँ!
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आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज के चर्चा मंच पर भी की गई है!
सूचनार्थ!
फिर अभिव्यक्ति पर ही रोक क्यूं ?
जवाब देंहटाएंजब भावना का ज्वार उठता
अपना पक्ष समक्ष रखता
तब वर्जना सहनी पडती
अभिव्यक्ति परतंत्र लगती |.............वाह बहुत बढिया
फिर भी कवि मन कभी ना कभी अपने मन की बात लिख ही जाता हैं ..
बहुत बढ़िया लिखा है|बहुत सुन्दर..
जवाब देंहटाएंफिर अभिव्यक्ति पर ही रोक क्यूं ? behad sundar rachana...
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना ...
जवाब देंहटाएंबहूत सुंदर
जवाब देंहटाएंबेहतरीन अभिव्यक्ती ..
बहुत सुंदर भावपूर्ण प्रस्तुति|
जवाब देंहटाएंगणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनायें|
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंगणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनायें|
गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएं....!
जवाब देंहटाएंजय हिंद...वंदे मातरम्।