कितने ही -भाषण सुन   कर 
प्रातः काल नींद से जागते ही 
मन का सुकून खो जाता है
अखवार में अधिकाँश
कॉलम भरे होते है
कॉलम भरे होते है
आपत्ति जनक समाचारों से 
मानावता शर्मसार हुई है 
मानव के अवमूल्यन से
दरिंदगी से भरी हुई हैं 
आधी से अधिक घटनाएं
समाज में इतना विधटन होगा 
कभी कल्पना नहीं थी
सारी मान्यताएं खोखली हो रहीं   
 आधुनिकता की भेट चढ़ती  रहीं   
कुछ कहने पर कहा जाता 
है यह सोच का ढंग पुराना 
आज के बच्चे यह सब नहीं मानते 
पर हम तो इतना जानते हैं 
जब भी किसी अवला की 
 चुन्नी तार तार हुई है 
किसी अबोध के संग दुराचार हुआ है
उसे मार कर फैका गया है
किसी अबोध के संग दुराचार हुआ है
उसे मार कर फैका गया है
निगाहें शर्मसार हुई हैं 
मन में पीड़ा होती है
दरिंदगी की हद होती है
मन में पीड़ा होती है
दरिंदगी की हद होती है
इंसानियत दम तोड़ रही है 
आधुनिकता को कोस रही है |
आशा 

