कितने ही -भाषण सुन कर
प्रातः काल नींद से जागते ही
मन का सुकून खो जाता है
अखवार में अधिकाँश
कॉलम भरे होते है
कॉलम भरे होते है
आपत्ति जनक समाचारों से
मानावता शर्मसार हुई है
मानव के अवमूल्यन से
दरिंदगी से भरी हुई हैं
आधी से अधिक घटनाएं
समाज में इतना विधटन होगा
कभी कल्पना नहीं थी
सारी मान्यताएं खोखली हो रहीं
आधुनिकता की भेट चढ़ती रहीं
कुछ कहने पर कहा जाता
है यह सोच का ढंग पुराना
आज के बच्चे यह सब नहीं मानते
पर हम तो इतना जानते हैं
जब भी किसी अवला की
चुन्नी तार तार हुई है
किसी अबोध के संग दुराचार हुआ है
उसे मार कर फैका गया है
किसी अबोध के संग दुराचार हुआ है
उसे मार कर फैका गया है
निगाहें शर्मसार हुई हैं
मन में पीड़ा होती है
दरिंदगी की हद होती है
मन में पीड़ा होती है
दरिंदगी की हद होती है
इंसानियत दम तोड़ रही है
आधुनिकता को कोस रही है |
आशा
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक चर्चा मंच पर चर्चा - 3365 दिया जाएगा
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
सुप्रभात
हटाएंमेरी रचना शामिल करने की सूचना के लिए आभार सर
बहुत सुन्दर रचना प्रिय सखी
जवाब देंहटाएंसादर
सुप्रभात
हटाएंटिप्पणी के लिए धन्यवाद अनीता जी |
ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 12/06/2019 की बुलेटिन, " १२ जून - विश्व बालश्रम दिवस और हम - ब्लॉग बुलेटिन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
हटाएंसूचना हेतु आभार सर |
बहुत खूब आशा जी ।!
जवाब देंहटाएंधन्यवाद शुभा जी |
हटाएंवाकई ! आज के नौजवानों की सोच में मानवीय मूल्यों का इतना ह्रास होता जा रहा है कि भविष्य कितना अंधकारमय होगा यह सोच कर ही डर लगता है ! शोचनीय स्थिति है ! सुन्दर रचना !
जवाब देंहटाएंटिप्पणी हेतु धन्यवाद साधना |
हटाएंअति सुंदर लेख
जवाब देंहटाएंधन्यवाद टिप्पणी के लिए |
हटाएंअति सुंदर लेख
जवाब देंहटाएंसूचना हेतो आभार श्वेता जी |
जवाब देंहटाएंबेहद मर्मस्पर्शी रचना ,सादर नमस्कार
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
हटाएंधन्यवाद कामिनी जी टिप्पणी के लिए |
बेहतरीन प्रस्तुति
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
धन्यवाद टिप्पणी के लिए ओंकार जी |