02 दिसंबर, 2023

है जीवन अधूरा तुम्हारे बिना

 है जीवन अधूरा प्रिय  तुम्हारे बिना

पहले भी खालीपन रहता था

जब कभी तुम बाहर जाते थे

जल्दी ना लौट पाते थे |

आते ही मेरी  शिकायतों की

 दुकान लग जाती थी

फिर भी  देर तक रूठी ना रह पाती थी

मन ही जाती थी |

अब वह भी संभव नहीं

तुमने साथ जब  छोड़ा मैं  अकेलेपन से घिरी

अब किसी का साथ नहीं है

मन पर बोझ भारी है |

कितनी कोशिश करती हूँ

मन को व्यस्त रखने की

पर चित्त एकाग्र नहीं हो पाता

कैसे उसे समझाऊँ ,यह किसी ने न बताया  |

धीरे धीरे आध्यात्म की ओरझुकाव होने लगा

 शायद सफल हो पाऊं इसमें कुछ तो कर  पाऊं

प्रभु को पाकर ही अपने को धन्य मानूं |

आशा सक्सेना

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01 दिसंबर, 2023

अनुभव


अथाह ज्ञान केवल

 पुस्तकों से नहीं आता

बहुत प्रयत्न करने होते

 अनुभव के संचय के लिए |

यह  ज्ञान से नहीं आते

उनको भी गुनना पड़ता है

 जीवन में उतारना पड़ता है 

 जीवन में अनुभवों की कमीं नहीं | 

यह क्रिया तभी संपन्न होती है

जब मन में दृढ प्रतिज्ञा हो

 जीवन में उतारने की क्षमता हो 

किसी के कहने सुनने से

 कुछ नहीं होता 

मन में होना चाहिए ललक 

परखने की व अनुकरण की |

उनको सीखने के लिए

 जीवन में उतारने के लिए

 नियमित अभ्यास की 

होती है आवश्यकता |

पूर्ण श्रद्धा से किये कार्य

 अनुभव से सफलता ही देते हैं

जीवन में असफलता

 कभी नजदीक नहीं आती |

आशा सक्सेना 


30 नवंबर, 2023

तुम्हारे सानिध्य में

 

तुम्हारे सानिध्य में उसे

तुम्हारा भक्त बना दिया है

पहले जीवन बेरंग था तुम पर  आस्था रखी

जीवन सार्थक कर दिया |

यही आस्था और विश्वास उसे

जीवाव जीने की प्रेरणा देते उसे

कितनी भी समस्या आए

उसको  पार करना सिखा दिया उसे |

जीवन  में  समस्याओं की

कोई कमी नहीं होती

यदि उनसे दूर भागे

 कैसे सफल जीवन जी पाएंगे |

जितनी कोशिश उनसे

 बाहर  निकलने की करेंगे

जितनी  सफलता पाएगे

 तुम पर आस्था बढ़ती जाएगी

 और प्रगाढ़ होती जाएगी |

आशा सक्सेना

29 नवंबर, 2023

हाइकु

 

१-जीवन नैया

जल में डाली गई

आगे बहती

२-कहते रहे

यह क्या हो रहा है

किसी ने कहा

३-कविता गाई

मन में बसी रही

बड़े प्यार से

४-चतुर हुए

गीत गीत गाकर

पाई प्रशंसा

५-गुनगुनाओ

गीत मधुर लगा है

 शब्द प्यारे हैं |

आशा सक्सेना 

भूलभुलैया

 



 जीवन की राह हुई भूल भुलिया जैसी

जब भी कदम बढाए उसमें फँस कर रह गई

जब भी आगे बढ़ना चाहां  राह नजर ना आई

कदम बढाए दीवार से टकराई आगे बढ ना पाई |

बचपन में कोई कठिनाई ना थी जीवन चलता रहा सरलता से पर

मुझे आगे के जीवन का अंदाजा न था

 जब उम्र बढी जीवन में  झमेले ने  रोका

जितनी कोशिश की उतनी ही उलझती गई

भूल भुलैया से निकलने में किसी ने मार्ग दर्शन ना दिया |

दो कदम भी ना बढे मेरे मैं जहां थी वहीं रही

जहां से अन्दर प्रवेश किया था वहीं  खुद को खडा पाया

 कुछ समय  बाद अपने को वहीं पाया आगे कोई राह ना मिली

जितना आगे बढ़ती वहां का  मार्ग बंद हो जाता   |

कोई सीधा मार्ग नजर ना आया

 ऐसी भूल भुलैया में फँस कर रह गई

कोई सीधा मार्ग न मिला

जीवन में आगे बढ़ने  की राह अवरुद्ध हुई  |

आशा सक्सेना 


28 नवंबर, 2023

मकान आत्मा का


यह काया  है मकान आत्मा की

है  सुन्दर अंतह  पुर इसका

वाह्य आवरण प्यारा सा  इसका

लोगों को ईर्ष्या  होती इसका रूप देख  |

जब झाँक कर देखा इसके अन्दर

और अधिक आकर्षक लगा वहां

यही आकर्षण आया ऐसा

 घर छोड़ने का मन न हुआ |

एक समय ऐसा आया तन थका मन हारा  

 पुराना  घर छोड़ने का मन बनाया

ईश्वर से की प्रार्थना देह छोडी

निकला नए घर की तलाश में |

जैसे ही नया धर मन के लायक मिला

फिर नया घर  देखा पसंद लिया

पहुंचने की तैयारी की अब यादें ही बाक़ी रहीं

आत्मा कभी परमात्मा से मिली नया घर पसंद नहीं आया |

आशा सक्सेना

27 नवंबर, 2023

अंतर दौनों में

 


कभी मुझे भी उस दृष्टि से देखा होता

मुझ में और भैया में अंतर ना किया होता

मैं भी तुम्हारी अपनी होती दो कुल की प्यारी होती

मैं भी अपने  कर्तव्य निभाती |

पूरे मन से  सब के समक्ष आती  

ससुराल में वही सन्मान पाती

 दूसरों को दिल से अपनाती

तुम्हारा  सर उन्नत होता

जब  दो कुलों में प्यार बांटती |

यूँ तो कहते हो बेटी और बेटे  में

 कोई भेद नहीं किया कभी तुमने

पर अब स्पष्ट दिखाई देता है

कितना अंतर है  मुझ में और भैया में |

जब भी कोई बात होती मुझे पराई कहकर

 कर मन को ठेस पहुंचाई जाती

कभी पराया धन कहा जाता

कहीं मैं इस  घर को भी अपना ना समझ लूं |

आई हूँ महमानों की तरह वही हो कर रहूँ

अपनी सीमाएं नहीं भूलूँ

 यही बचपन से  सिखाया गया मुझको

मैंने भी अंतर को समझा मन में सहेजा है  |

आशा सक्सेना 


26 नवंबर, 2023

सागर का नजारा

 

सागर तट पर विचरण करता

यहाँ वहां घूमता फिरता

कभी जल में पैर  डालता

लहरों से टकराता आनंद लेता |

मन में भय न होता जब भी

ठन्डे पानी को  छूकर

मन में उत्साह जाग्रत होता

लहरों के साथ बहना चाहता |

 लोगों को जल क्रीडा करते देखता

उसका मन भी होता जल में जाने का

जब प्यास लगती पानी अंजुली में ले  कर

पीने के लिए मुंह खोलता |

 स्वाद में इतना खारा  होगा जल

कल्पना से दूर होता

प्यासा ही रह जाता एक भी घूँट जल

 कंठ के नीचे न उतर पाता |

वह  सोचता इतने बड़े जल स्त्रोत का क्या लाभ

जब प्यास ही ना बुझ पाए प्यासा ही  रहना पड़े  

 फिर उसकी अच्छाई का आकलन करता

कई संपदा छिपी हुई हैं उस जल  में |

वह धरती के लिए

 जल संचित करता बादल के रूप में

जब बादल बरसता झमाझम

धरती होती तर बतर जल में भीग कर |

आशा सक्सेना