ख्यालों को बुन कर शब्दों में 
एक दुशाला बनाया है मैंने 
बड़ें जतन से उसे मन के 
 बक्से में सहेजा  मैंने |
जब भी दिल चाहता ओढ़ने का उसे 
बहुत प्यार से निकालती हूँ 
कुछ काल तक पहन कर 
तह करके रखती हूँ मैं |
यह भी चिंता रहती है
 कहीं कट पिट  ना  जाए 
कहीं रंग ना खो जाए विवर्ण  ना हो जाए 
फिर से उसे नया रंग दिलवा कर 
जब भी घारण करती हूँ 
उनमें  दुगनी चमक आ  जाती है 
                 नए ख़याल शामिल हो जाते हैं |
आशा
आशा


