26 सितंबर, 2015

बेटी बिना

माँ बेटी का रिश्ता के लिए चित्र परिणाम
बेटी बिना घर सूना सूना
कोई विकल्प न होता उसका
हैं वे ही भाग्यशाली जो
बेटी पा पुलकित होते
उसे घर का सम्मान समझते
सजाते सवारते पढ़ाते लिखाते
इतना सक्षम उसे बनाते
गर्व से कह पाते
है मेरी बेटी मेरी शान
दौनों कुल की रखती आन
अच्छी बेटी ,बहन ,माँ हो
देती प्रमाण अच्छी शिक्षा का
माता पिता के सहयोग का
उनके उन्नत  सोच का

 कोई विकल्प न होता 
बेटी बिना घर सूना होता |


आशा

24 सितंबर, 2015

कच्ची सड़क

सूरज की तपिश से दूर रखती
छन छन कर आती धूप
बहुत सुकून देती
मार्ग सुरम्य कर देती |
आच्छादित वृक्षों से
मार्ग पर चलने की चाहत
दौड़ने भागने की मंशा
बलवती कर देती |
जब भी अवसर मिलता
या सैर का मन होता
पेड़ों की छाया गिनते जाते
दूर तक निकल जाते |
गुनगुनाते आगे बढ़ते
 गीत का मुखड़ा याद रहता
अंतरा भूल जाते
गीत अधूरा भी आनंद देता |
लाल मिट्टी पर पेड़ों के  अक्स
उनका  लंबा छोटा होना
छाया पकड़ने की कोशिश में
अनवरत व्यस्त रहना
एक खेल सा हो जाता
रास्ता मस्ती में कट जाता |
चलते चलते जब थकते
शरण पेड़ की छाया देती
आगे बढ़ने की क्षमता जगती
कुछ पल वहां कट जाते |
दूरी कब कम हो जाती
मन चंचल जान न पाता
उस  राह पर चलने का
मोह छूट न पाता |
दोपहर में वहां चलना
तनिक भी कष्ट न देता
कितना भी बोझ बस्ते का हो
वह हल्का ही लगता
घंटी की आव़ाज सुनते ही
द्रुत गति से भागते
मौज मस्ती भूल जाते
पढ़ने में व्यस्त हो जाते |
भीड़ भाड़ से दूरी है
विशेषता उस मार्ग की 
है हर मौसम में सुखदाई
वह राह बहुत मन भाई |
गुल्ली डंडा हो या क्रिकेट 
  याद  वही मार्ग आता 
बच्चों के लिए वही
खेल का मैदान होता |
 |
आशा













22 सितंबर, 2015

बाई पुराण


आदत से महबूर है  ,बाई बहुत उस्ताद |
रोकाटोकी रोज की ,लगती नई न आज ||

रोजाना बहस बाजी ,उससे सहन न होय |
बाई है तो क्या हुआ ,अपना ज्ञान न  खोय ||

सभी सवाल का जबाब ,एक भी नहीं उधार |
 शब्द वाण थे बेमिसाल, बार बार किये प्रहार ||

हुआ टोटा बाई का ,मानो पड़ा अकाल |
सातों जाती कार्यरत ,फिर भी ना निस्तार ||

महरी माई ना करो ,करो हाथ से काम |
अति आलस्य की हुई ,अच्छा नहीं विश्राम ||

सुख शान्ति की खोज में ,ना हो यूं हलकान
बाई है या मुसीबत ,यही सत्य पहचान ||

मुसीबत झेलना पड़े ,नहीं कोई उपाय |
जिसको आना हो आये ,बाई छोड़ न जाय ||

आशा

20 सितंबर, 2015

कल्पना


हर अदा तेरी
अधिक समीप लाती
तू ही तू नज़र आती
स्वप्नों में सताती |
जुम्बिश अलकों की
कशिश खंजन नयनों की
छिपा लूं अपने मन में
सहेजूँ ये पल दिल में
सुर्ख लाल अधर तेरे
मुस्कुराते ध्यान खीचते
मीठे बैन उनसे झरते
मन में राह बनाते 
अंतस में पैंठ जाते 
मंथर गति से तेरा चलना
आँचल  का हवा में उड़ना
उसे सम्हालने की कोशिश में
चूड़ियों का खनकना
सुनने को मन करता
चूड़ियों की खनक हाथों में
पायल सजती पैरों में 
हिना की महक
महावरी रंग की झलक
तुझे और समीप लाती
दिल से दिल की राह दीखती
तेरी जुल्फ़ों के साए में
तनिक ठहर जाऊं अगर
तुझसे कुछ न चाहूँ
तेरा हो कर रह जाऊं
सुबह शाम तुझसे हो
रात सजे  तेरे स्वप्नों से
है मेरे लिए तू क्या
यह कैसे तुझे बताऊँ |
आशा